' निर्माण का महल त्याग की नींव पर खड़ा किया जाता है । व्यक्ति हो या राष्ट्र जो भी बड़े बने हैं उन्हें त्याग करना पड़ा है । '
समाज -सेवक महात्मा हंसराज तब विद्दार्थी ही थे । आवश्यक कार्यों से बचा सारा समय मुहल्ले के गरीब तथा अनपढ़ लोगों की चिठ्ठी -पत्री लिखने तथा पढ़ने में ही बिता देते थे । जब परीक्षा निकट आई तो माता ने समझाया --" क्यों रे , तू सारा दिन दूसरों की लिखा -पढ़ी करता रहता है , अपनी पढाई कब करेगा ? " इस पर वे सहज भाव से बोले -" माँ ! यदि पढाई -लिखाई का लाभ अकेले ही उठाते रहे हम , दूसरों का उससे कुछ भला न हो तो ऐसी पढाई -लिखाई किस काम की । शिक्षा की उपयोगिता तभी है जब उसका अधिक -से -अधिक लाभ दूसरों को मिले । "
यह वह समय था जब भारत में अंग्रेजी राज्य की जड़ें मजबूत करने के लिये शिक्षा को साधन के रूप में प्रयुक्त किया जा रहा था । ऐसे समय में नवयुवक हंसराज --जो आगे चलकर महात्मा हंसराज के नाम से प्रसिद्ध हुए - ने अंग्रेजी का पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया और उत्तम श्रेणी में B. A . पास किया । उस समय सरकारी नौकरी के अनेक अवसर उनके हाथ में थे ।
वे भारतीय धर्म और वैदिक साहित्य को अच्छी तरह पढ़ चुके थे तथा स्वामी दयानंद की तीव्र तर्क पद्धति की अपने मस्तिष्क में प्रतिस्थापना कर चुके थे ।
नवयुवक हंसराज के सामने केवल एक उद्देश्य था कि कोई ऐसी योजना बनाई जाये , जिससे जनसाधारण को भारतीय राष्ट्र के अनुकूल शिक्षित करके उनमे आत्मविश्वास , देशभक्ति तथा स्वाभिमान की भावना जगाई जा सके ।
लाहौर में कुछ विचारवानों ने स्वामी दयानंद कॉलेज कमेटी की स्थापना कर रखी थी और चाहते थे कि स्वामी दयानंद के नाम पर ऐसा विद्दालय प्रारंभ किया जाये जिसमे राष्ट्रीय शिक्षा दी जा सके । विद्वान हंसराज ने कमेटी में प्रवेश किया और उसमे अवैतनिक शिक्षक बन गये ।
सच्ची भावना से योजना का सूत्रपात हुआ । सरकार के अनेक विरोध के बावजूद सुयोग्य शिक्षक महात्मा हंसराज अपना काम करते रहे ।
कुछ समय बाद उस संस्था को डी . ए . वी स्कूल के नाम से ख्याति प्राप्त हुई और उनके शिक्षा अभियान को डी . ए . वी . आंदोलन का नाम मिला । महात्मा हंसराज की भावनापूर्ण तपस्या फलीभूत हुई , उनका त्याग अंकुरित हुआ और देश में डी . ए . वी . स्कूल व कॉलेज का जाल बिछने लगा , उनके जीवन काल में ही डी . ए . वी . मिशन के अनेक शिल्प विद्दालय , वैदिक शोध संस्थान , आयुर्वेदिक कॉलेज आदि संस्थायें बन गईं । महात्मा हंसराज का मिशन पूरा हुआ । भारतीयता की रक्षा हुई । डी . ए . वी . आंदोलन के रूप में महात्मा हंसराज की देन अनुपम है , जिसके लिये क्या भारतीय और क्या भारतीयता , युग -युग तक उनकी आभारी रहेगी ।
समाज -सेवक महात्मा हंसराज तब विद्दार्थी ही थे । आवश्यक कार्यों से बचा सारा समय मुहल्ले के गरीब तथा अनपढ़ लोगों की चिठ्ठी -पत्री लिखने तथा पढ़ने में ही बिता देते थे । जब परीक्षा निकट आई तो माता ने समझाया --" क्यों रे , तू सारा दिन दूसरों की लिखा -पढ़ी करता रहता है , अपनी पढाई कब करेगा ? " इस पर वे सहज भाव से बोले -" माँ ! यदि पढाई -लिखाई का लाभ अकेले ही उठाते रहे हम , दूसरों का उससे कुछ भला न हो तो ऐसी पढाई -लिखाई किस काम की । शिक्षा की उपयोगिता तभी है जब उसका अधिक -से -अधिक लाभ दूसरों को मिले । "
यह वह समय था जब भारत में अंग्रेजी राज्य की जड़ें मजबूत करने के लिये शिक्षा को साधन के रूप में प्रयुक्त किया जा रहा था । ऐसे समय में नवयुवक हंसराज --जो आगे चलकर महात्मा हंसराज के नाम से प्रसिद्ध हुए - ने अंग्रेजी का पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया और उत्तम श्रेणी में B. A . पास किया । उस समय सरकारी नौकरी के अनेक अवसर उनके हाथ में थे ।
वे भारतीय धर्म और वैदिक साहित्य को अच्छी तरह पढ़ चुके थे तथा स्वामी दयानंद की तीव्र तर्क पद्धति की अपने मस्तिष्क में प्रतिस्थापना कर चुके थे ।
नवयुवक हंसराज के सामने केवल एक उद्देश्य था कि कोई ऐसी योजना बनाई जाये , जिससे जनसाधारण को भारतीय राष्ट्र के अनुकूल शिक्षित करके उनमे आत्मविश्वास , देशभक्ति तथा स्वाभिमान की भावना जगाई जा सके ।
लाहौर में कुछ विचारवानों ने स्वामी दयानंद कॉलेज कमेटी की स्थापना कर रखी थी और चाहते थे कि स्वामी दयानंद के नाम पर ऐसा विद्दालय प्रारंभ किया जाये जिसमे राष्ट्रीय शिक्षा दी जा सके । विद्वान हंसराज ने कमेटी में प्रवेश किया और उसमे अवैतनिक शिक्षक बन गये ।
सच्ची भावना से योजना का सूत्रपात हुआ । सरकार के अनेक विरोध के बावजूद सुयोग्य शिक्षक महात्मा हंसराज अपना काम करते रहे ।
कुछ समय बाद उस संस्था को डी . ए . वी स्कूल के नाम से ख्याति प्राप्त हुई और उनके शिक्षा अभियान को डी . ए . वी . आंदोलन का नाम मिला । महात्मा हंसराज की भावनापूर्ण तपस्या फलीभूत हुई , उनका त्याग अंकुरित हुआ और देश में डी . ए . वी . स्कूल व कॉलेज का जाल बिछने लगा , उनके जीवन काल में ही डी . ए . वी . मिशन के अनेक शिल्प विद्दालय , वैदिक शोध संस्थान , आयुर्वेदिक कॉलेज आदि संस्थायें बन गईं । महात्मा हंसराज का मिशन पूरा हुआ । भारतीयता की रक्षा हुई । डी . ए . वी . आंदोलन के रूप में महात्मा हंसराज की देन अनुपम है , जिसके लिये क्या भारतीय और क्या भारतीयता , युग -युग तक उनकी आभारी रहेगी ।