सभी शास्त्र जीवन के स्रोत से प्रकट होते हैं , परंतु जीवन किसी भी शास्त्र से प्रकट नहीं होता है ।
जीवन तो सभी जीते हैं परंतु प्रत्येक जीवन के मर्म को , इसमें निहित सत्य को नहीं जान पाता ।
' जीवन शास्त्र शांत मन के प्रकाश में पढ़ा जाता है और यह शांत मन सद्विचार एवं सत्कर्मों की निरंतरता का सुफल है । '
सद्विचार और सत्कर्म निरंतर होते रहें तो जीवन शास्त्र के सभी अक्षर स्वत: ही अपना मर्म प्रकट कर देते हैं । यदि इसके विपरीत हो तो संपूर्ण जीवन अंधकार , पीड़ा और विष से घिर जाता है । इस अंधकार में फिर जीवन का कोई अर्थ प्रकट नहीं होता है , जीवन निरर्थक रह जाता है । इसलिये जो भी अपने जीवन की सार्थकता को खोजना चाहें , उन्हें अपने जीवन में सतचिंतन और सत्कर्म की निरंतरता पैदा करनी पड़ेगी । ऐसा हुआ तो यह लोक और परलोक आनंद पूर्ण हो जायेगा ।
जीवन तो सभी जीते हैं परंतु प्रत्येक जीवन के मर्म को , इसमें निहित सत्य को नहीं जान पाता ।
' जीवन शास्त्र शांत मन के प्रकाश में पढ़ा जाता है और यह शांत मन सद्विचार एवं सत्कर्मों की निरंतरता का सुफल है । '