'प्रार्थना के रूप में गायत्री मंत्र सर्वश्रेष्ठ मंत्र है , जिसमे जीवन की सर्वश्रेष्ठ विभूति ' सद्बुद्धि ' परमात्मा से मांगी गई है । '
मनुष्य जिस विभूति के कारण अन्य प्राणियों में श्रेष्ठ है , वह विभूति है -बुद्धि । परमात्मा ने मनुष्य को यह विभूति वरदान स्वरुप दी है ।
बुद्धि प्राप्त होने से भी अधिक महत्वपूर्ण है - सद्बुद्धि का प्राप्त होना । बुद्धि यदि भ्रष्ट होकर कुमार्गगामी बन जाये तो वह व्यक्ति का स्वयं का तो पतन करती है , उसके क्रियाकलाप समाज को भी क्षति पहुंचाते हैं ।
यदि मनुष्य सद्बुद्धि संपन्न हो तो वह अपना निज का कल्याण करने के साथ -साथ समाज को भी अपनी विभूतियों से लाभान्वित करता है । भगवान श्री कृष्ण ने गीता में इस ' सद्बुद्धि ' को ही बुद्धिमानों की विभूति और अपना स्वरुप बताया है । गायत्री उपासना का सर्वोपरि लाभ सद्बुद्धि के जाग्रत और प्रखर होने के रूप में साधक को मिलता है ।
अध्यात्म की भाषा में दूरदर्शी विवेकशीलता को ' प्रज्ञा ' कहा जाता है । गायत्री महाशक्ति का अवतरण - प्रज्ञा शक्ति के रूप में होता है । किसी व्यक्ति को जब यह उपलब्धि या सिद्धि प्राप्त हो जाती है तो वह सद्बुद्धि से प्रेरित सुव्यवस्थित एवं उत्कृष्ट रीति -नीति अपनाता है तथा उसके परिणाम स्वरुप निश्चित रूप से सर्वतोमुखी प्रगति के मार्ग पर बढ़ता चलता है ।
गायत्री उपासना साधक में ऐसी निर्मल सद्बुद्धि जाग्रत करती है कि उसको दोष -दुर्गुणों से स्वभावत: अरुचि और विरति हो जाती है और उन दोष -दुर्गुणों के परिणाम स्वरुप होने वाले कष्ट -क्लेशों से , नारकीय यंत्रणा से भी मुक्ति मिल जाती है ।
मनुष्य जिस विभूति के कारण अन्य प्राणियों में श्रेष्ठ है , वह विभूति है -बुद्धि । परमात्मा ने मनुष्य को यह विभूति वरदान स्वरुप दी है ।
बुद्धि प्राप्त होने से भी अधिक महत्वपूर्ण है - सद्बुद्धि का प्राप्त होना । बुद्धि यदि भ्रष्ट होकर कुमार्गगामी बन जाये तो वह व्यक्ति का स्वयं का तो पतन करती है , उसके क्रियाकलाप समाज को भी क्षति पहुंचाते हैं ।
यदि मनुष्य सद्बुद्धि संपन्न हो तो वह अपना निज का कल्याण करने के साथ -साथ समाज को भी अपनी विभूतियों से लाभान्वित करता है । भगवान श्री कृष्ण ने गीता में इस ' सद्बुद्धि ' को ही बुद्धिमानों की विभूति और अपना स्वरुप बताया है । गायत्री उपासना का सर्वोपरि लाभ सद्बुद्धि के जाग्रत और प्रखर होने के रूप में साधक को मिलता है ।
अध्यात्म की भाषा में दूरदर्शी विवेकशीलता को ' प्रज्ञा ' कहा जाता है । गायत्री महाशक्ति का अवतरण - प्रज्ञा शक्ति के रूप में होता है । किसी व्यक्ति को जब यह उपलब्धि या सिद्धि प्राप्त हो जाती है तो वह सद्बुद्धि से प्रेरित सुव्यवस्थित एवं उत्कृष्ट रीति -नीति अपनाता है तथा उसके परिणाम स्वरुप निश्चित रूप से सर्वतोमुखी प्रगति के मार्ग पर बढ़ता चलता है ।
गायत्री उपासना साधक में ऐसी निर्मल सद्बुद्धि जाग्रत करती है कि उसको दोष -दुर्गुणों से स्वभावत: अरुचि और विरति हो जाती है और उन दोष -दुर्गुणों के परिणाम स्वरुप होने वाले कष्ट -क्लेशों से , नारकीय यंत्रणा से भी मुक्ति मिल जाती है ।