17 July 2013

BELIEF

मद्रास के रामकृष्ण मठ में ठाकुर का जन्मोत्सव मनाया जा रहा था | शशि महाराज (श्री रामकृष्णानंद )उस मठ के अध्यक्ष थे | मठ में कोई व्यवस्था भी नहीं थी | सभी भक्तों ने आकर पूछा -"कैसे सब होगा ?"
शशि महाराज बोले -"सबको पानी पिलाकर भेज देंगे | मठ मेरा नहीं प्रभु का है | "जब सारे भक्त आ गये ,संकीर्तन होने लगा ,तभी एक व्यक्ति एक ट्रक भरकर सामान ले आया ,ढाई हजार व्यक्तियों के लिये उसमे प्रसाद था | सभी की व्यवस्था हो गई |
भगवान देखते हैं कि हम किस पर निर्भर हैं -उस पर या धन पर |
यश -धन सभी का स्रोत परमात्मा है ,उस पर द्रढ़ विश्वास चाहिये |  

ART OF LIVING

'अपनी दुष्प्रवृतियों को नियंत्रित कर लेना ही साधना है और अपने व्यक्तित्व का परिष्कार कर लेना ही सिद्धि है | '
      एक व्यक्ति दीनबंधु एन्ड्रूज से अपनी करुण कथा कह रहा था -"मैं भी एक संपन्न घराने का था ,पर जुए और शराब की लत ने मुझे सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया | अब खाने के लाले पड़ रहे हैं ,इसी मजबूरी ने चोरी करना सिखा दिया ,कई वर्षों की जेल की सजा भी भुगत चुका हूँ | T. B. की शिकायत है ,मेहनत -मजदूरी करते नहीं बनता ,जीवन से ऊब चुका हूँ | "
   दीनबंधु बड़े धैर्य से उसकी कथा सुन रहे थे ,उन्होंने उससे पूछा --"बुरी आदतों का परिणाम बुरा होता है ,यह जानते हुए भी तुमने यह गलती क्यों की ?"
उसने कहा -"कुछ तो मित्रों के बहकावे में आकर और कुछ बड़प्पन का अहंकार जताने हेतु ।"
दीनबंधु ने उसे समझाया -"व्यक्ति बड़ा और महान बाह्य आडम्बर से नहीं ,वरन कर्तव्य से बनता है ,चिंतन और चरित्र की श्रेष्ठता से बनता है ,महानता सदा सादगी में होती है | "  दीनबंधु के समझाने से उसे अपराध -बोध तो हुआ ,वह बहुत ही दुखी होकर दीनबंधु की ओर देख रहा था |
      दीनबंधु ने उसे कई महीनो तक अपने साथ रखा ,उसका उपचार कराया | जब वह पूरी तरह स्वस्थ हो गया तो उन्होंने युवक से कहा -"अब तुम जा सकते हो ,अब इन बुरी आदतों से दूर रहना ,मेहनत -मजदूरी कर ईमानदारी की जिंदगी जीना | "
        युवक उन्हें प्रणाम कर चला गया | --------
             अनेक वर्षों बाद दीनबंधु की झोपड़ी के सामने आकर एक कार रुकी ,उससे सीधे -साधे लिबास में एक व्यक्ति उतरा ,दरवाजा खटखटाया | कुछ क्षण पश्चात दीनबंधु बाहर आये | व्यक्ति ने भाव -विभोर होकर कहा -"पहचाना | "दीनबंधु असमंजस में पड़ गये ,तभी उसने अपना परिचय देते हुए कहा -"मैं वही हूँ जिसने आपसे अनेक महीनों तक सेवा करवायी थी | "
परिचय पाकर दीनबंधु ने मुस्कराते हुए कहा -अरे !तुम !अंदर आओ | उस व्यक्ति ने उन्हें अपनी प्रगति -कथा सुनाई कि स्वस्थ होकर उनके पास से जाने के बाद किस तरह अखबार बेचते हुए आज वह एक फैक्ट्री का मालिक बन गया है | वह अपने साथ ढेर सारे उपहार और एक प्रस्ताव लेकर आया था कि अब वे इस झोपड़ी से एक अच्छे मकान में चलें जो उसने खरीदा था | उपहार के नाम पर उन्होंने एक गुलदस्ता रखा और शेष अभावग्रस्तों में बाँट देने को कहा ,उसके प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए उन्होंने कहा ---
"जीवन भर दूसरों की सेवा करना ,पिछड़ों को उठाना ,यही मेरे प्रति तुम्हारा सच्चा कृतज्ञता -ज्ञापन होगा | "वह व्यक्ति जीवन का एक और मंत्र सीखकर पुन:सेवा क्षेत्र की ओर चल पड़ा