10 July 2013

HAPPINESS \ GRIEF

'जीवन का दुःख ही एकमात्र सच है ,सुख तो छाया मात्र है और इसलिये यह कभी पकड़ में नहीं आता | इसको पाने -पकड़ने के समस्त प्रयास अनगिनत समस्याओं को जन्म देते हैं | '
   दुःख हमें जीवन की वास्तविकता से परिचय कराता है | दुःख को देवों का धन माना जाता है ,जिसके प्रहार से आंतरिक कलुषता धुलती है |
     उपनिषद के ऋषिकहते हैं कि -सुख के पीछे मत भागो और दुःख को जीवन की चरम सच्चाई मानकर इसे निर्विकार भाव से झेलो  |
    दुःख के ताप को यदि धैर्य और साहस पूर्वक झेल लिया जाये तो यह तपस्या बन जाता है ,यह कर्म बंधन को काटने का एक श्रेष्ठ साधन बन जाता है |
       ठीक इसी तरह जीवन में आये सुख को बिना इतराए -इठलाये भोग लिया जाये तो यह महायोग बन जाता है ,ऐसा योग जो चेतना को विकसित करता है |
 ऋषि कहते हैं कि दुःख हो या सुख सभी को निर्विकार भाव से झेलना ही समझदारी है | जब जीवन में जो आये उसे स्वीकार करना चाहिये |
             सुख उतना जितना मिल जाये और दुःख को भगवान का प्रसाद मानकर उसे स्वीकार कर लेना  ही विवेक है | इसलिये ऐसी द्रष्टि पैदा करना आवश्यक है जो सुख दुःख को समान ढंग से झेल सके |

         महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ ,श्री कृष्ण द्वारका लौटने लगे तो कुंती ने उनसे प्रार्थना की -"हे प्रभु !आप आशीर्वाद दें कि हम पर विपतियाँ  सदैव आती रहें | श्री कृष्ण  ने पूछा -"आप लोगों ने जीवन भर विपतियो का सामना किया फिर ऐसी विलक्षण मांग क्यों ?कुंती बोलीं -"भगवन !विपतियाँ आयेंगी तो उनसे रक्षा के लिये आप भी आयेंगे ,जिस भी कारण से आपका दर्शन हो ,हमारे लिये तो सौभाग्यशाली ही होगा | "
       विपतियाँ प्रत्येक के जीवन में आती हैं पर जिनकी भगवान पर अटल श्रद्धा होती है ,वे इन क्षणों को जीवन का सौभाग्य मानकर स्वीकार करते हैं | 

NOBLE

'जो मनीषी हैं वे स्तुति से न तो प्रसन्न होते हैं ,और न ही निंदा से अप्रसन्न होते हैं | '
          समर्थ गुरु रामदास के साथ एक  उद्दंड व्यक्ति चल पड़ा और रास्ते भर खरी -खोटी सुनाता रहा | समर्थ उन अपशब्दों को चुपचाप सुनते रहे |
       सुनसान समाप्त हुआ और बड़ा गाँव नजदीक आया तो समर्थ रुक गये और उस उद्दंड व्यक्ति से कहने लगे -"अभी और जो बुरा -भला कहना हो ,उसे कहकर समाप्त कर लो अन्यथा अगले गाँव में मेरे परिचित हैं ,सुनेगें तो तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार करेंगे | तब इससे कहीं अधिक कष्ट मुझे होगा |
        वह व्यक्ति पैरों में गिरकर समर्थ गुरु रामदास से क्षमा मांगने लगा | समर्थ ने उसे अपना आचरण सुधारने एवं परिवार में भी सद प्रवृतियों को फैलाने का आशीर्वाद दिया |
   संत के इस व्यवहार ने उसके जीवन को तो बदला ही ,उसे बदले में जहां तिरस्कार और गालियां मिला करती थीं ,वहां अब सम्मान मिलने लगा |