3 July 2013

DISEASE

'दरिद्रता ,रोग ,दुःख ,बंधन और विपतियाँ ये सब मनुष्य के अपने ही दुष्कर्म रूपी वृक्ष के फल हैं | '

एक बार अग्निवेश ने आचार्य चरक से पूछा -"संसार में जो अगणित रोग पाये जाते हैं ,उनका कारण क्या है ?"आचार्य ने उत्तर दिया -"व्यक्ति के पास जिस स्तर के पाप (दुष्कर्म )जमा हो जाते हैं ,उसी के अनुरूप शारीरिक एवं मानसिक व्याधियां उत्पन्न होती हैं ॥"
जिस तरह आहार -विहार के असंयम से शारीरिक रोग पनपते हैं ,उसी तरह विचारणा ,चिंतन -मनन एवं कर्म के लिये निर्धारित नीति -मर्यादा का उल्लंघन करने के कारण मानसिक रोग उत्पन्न होते हैं |
शरीर और मन परस्पर गुँथे हुए हैं | शारीरिक रोग कालांतर में मानसिक और मानसिक रोग ,शारीरिक रोग बन जाते हैं |
               उच्च स्तरीय आस्थाओं की अवहेलना ,विलासी ,बनावटी और अहंकारी गतिविधियाँ अपनाने ,चिंतन में दुष्टता और आचरण में भ्रष्टता के कारण आंतरिक तनावों में वृद्धि होती है | यही कारण है कि आज अधिसंख्यक व्यक्ति किसी न किसी प्रकार के मानसिक रोग से ग्रस्त पाये जाते हैं | 

KARM FAL

'कुकर्मों के दुष्परिणाम अदूरदर्शियों को जन्मांधों की तरह दिखाई नहीं देते ,किंतु जिनके ज्ञान चक्षु खुले हैं ,वे संभलकर पैर रखते हैं और परम लक्ष्य तक पहुँचते हैं | '
                     अंधकूप  के   पांच    प्रेत
         आचार्य महीधर अपनी शिष्य मंडली सहित तीर्थ यात्रा पर जा रहे थे | रात्रि में एक सुरक्षित स्थान पर विश्राम के लिये रुक गये | शिष्य गहरी निद्रा में सो गये किंतु आचार्य महीधर को नींद नहीं आई |
          कहीं दूर पर उन्हें कई व्यक्तियों का करुण -क्रन्दन सुनाई दे रहा था | जिधर से रुदन की आवाज आ रही थी वे उस ओर चल पड़े और एक अंधकूप के निकट जा पहुँचे | उनने देखा कि पांच व्यक्ति उसमे औंधे मुँह पड़े रो रहे हैं | आचार्य ने उनसे पूछा -"वे कौन हैं और क्यों इस गर्त में गिरकर रो रहे हैं और निकलने का प्रयत्न क्यों नहीं करते ?"
       उनमे से एक ने कहा -"हम पांच प्रेत हैं ,कर्मफल भोगने के लिये इस गर्त में गिराये गये हैं ,विधि -विधान को तोड़कर निकल सकना हमारे लिये संभव नहीं है | "आचार्य ने पूछा -"आप लोगों को किस कारण इस दुर्गति में पड़ना पड़ा ?"
                   पहले प्रेत ने कहा -"वह पूर्व जन्म में ब्राह्मण था ,दान -दक्षिणा लेता और विलास में खर्च करता तथा ,ब्रह्म कर्म की उपेक्षा करता था | "
            दूसरे ने कहा -'मैं क्षत्रिय था लेकिन मैंने दुखियों की रक्षा सहायता न की और शराब ,मांस ,अनाचार ,व्याभिचार जैसे कुकृत्यों में निरत रहा ।'
            तीसरे ने कहा -'मैं वैश्य था ,अतिशय लाभ कमाना ,व्यापार में हेरा -फेरी ,संपन्न होते हुए भी कंजूस और निष्ठुर था | '
            चौथे ने कहा -'मैं शूद्र था ,अहंकारी ,आलसी ,किसी की सीख मानी नहीं ,जिम्मेदारी जानी नहीं
     पांचवां प्रेत तो विचित्र था ,वह साथियों को भी अपना मुँह नहीं दिखाता | दोनों हाथ से मुँह ढक कर बोला -"मैं पूर्व जन्म में साहित्यकार -कलाकार था ,पर अपनी कलम से मैंने कभी नीति ,धर्म ,सदाचार का शिक्षण नहीं किया | अश्लीलता ,कामुकता और फूहड़पन बढ़ाने वाला साहित्य लिखकर लोगों को पतित ,भ्रमित किया ,ऐसे संगीत ,अभिनय का सृजन किया जिसने वासना भड़काई | सारे समाज को भ्रष्ट करने के आरोप में यमराज ने मुझे इस कष्टकर स्थिति में पहुंचा दिया | इतना कहकर वह आगे बोल नहीं सका उसकी हिचकी बंध गई |
      प्रेतों ने आचार्य महीधर से कहा कि उन्हें अंधकूप से निकालने का प्रयत्न व्यर्थ है ,उन्होंने प्रार्थना की कि वे जन -जन को उनकी दुर्गति का कारण बता दें ताकि अन्य लोग ऐसी भूल न करें |
महीधर वापस लौट आये और उस दिन से लोगों को ईश्वरीय न्याय को समझाने के लिए पांच प्रेतों की कथा को अपने प्रवचन में सम्मिलित करने लगे |