18 April 2013

DUTIFUL

'पवित्र जीवन ,प्रेमी स्वभाव ,परमार्थपरायणता ही कर्तव्य निष्ठा की सही परिभाषा है ,जो स्वर्गीय आनंद दिलाती हैं '|
मरने के बाद तीन व्यक्तियों की आत्माएँ मृत्यु देवता धर्मराज के पास पहुंची | दूतों ने पहले के बारे में बताया कि ये बड़े महात्मा हैं ,युवावस्था में माता -पिता ,पत्नी -बच्चों को छोड़कर ये जंगल में चले गये और जीवन -भर तप करते रहे | धर्मराज ने कहा -"इसने कर्तव्यों की उपेक्षा की है | ऐसा व्यक्ति धार्मिक कैसे बन सकता है ?परिवार के लोगों के साथ इसने विश्वासघात किया है | इसे कर्तव्य पालन हेतु पुन:धरती पर भेजें ,तभी यह स्वर्ग पा सकेगा | "दूसरे व्यक्ति के बारे में दूतों ने कहा -"यह बड़ा कर्तव्यपरायण है | पत्नी बीमार पड़ी ,तब भी यह बेपरवाह काम करता रहा | मर गई पर चिंता नहीं की | जीवन भर अपने काम में लगा रहा | "धर्मराज बोले -" ऐसे ह्रदयहीन का स्वर्ग में क्या स्थान इसे  फिर से पृथ्वी पर भेजो ,संवेदना पूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा दो | "!तीसरे  व्यक्ति के बारे में दूतों ने बताया कि यह एक साधारण गृहस्थ है | ईश्वर विश्वास और पवित्रता का जीवन जिया ,परिवार को प्रेमपूर्वक विकसित कर संस्कारवान बनाया | हमेशा दूसरों के सुख और उत्थान हेतु कार्य करता रहा | "धर्मराज ने कहा -"स्वर्ग ऐसे ही पवित्र और परमार्थी लोगों के लिये बनाया गया है | इन्हें आदर पूर्वक स्वर्ग में स्थान दें | "

SATISFACTION

एक युवक बड़ा परिश्रमी था | दिन भर काम करता ,शाम को जो मिलता खा -पीकर चैन की नींद सो जाता | एक दिन उसने एक धनी व्यक्ति का ठाठ -बाट देख लिया | बस नींद उड़ गई | रात भर नींद नहीं आई ,उसी के ख्वाब देखने लगा | कुछ संयोग ऐसा हुआ कि उसकी लाटरी लग गई | ढेरों धन उसे अनायास मिल गया | अब उसका सारा समय भोग -विलास में बीतने लगा | विलासिता पूर्ण जीवन जीने और श्रम न करने से वह दुर्बल होता चला गया | उसके पूर्व के मित्र भी उससे जलने लगे ,सब पैसे के प्रेमी हो गये | उसे भी किसी पर विश्वास नहीं रहा | चिंता और दोगुनी हो गई ,नींद फिर चली गई | सोचने लगा ,इससे पूर्व की जिंदगी बेहतर थी | एक दिन एक महात्मा जी उधर आये | उनसे उसने सुख और ख़ुशी का मार्ग पूछा | महात्मा ने एक शब्द कहा --'संतोष '| और आगे बढ़ गये | युवक समझ गया | सारी मुफ्त की संपति उसने एक अनाथालय और विद्दालय को दान कर दी और स्वयं एक लोकसेवी का ,परिश्रम शील जीवन जीने लगा |