5 April 2013

POSITIVE THINKING

एक बार बादशाह अकबर ने कवियों का सम्मेलन बुलाया और विषय रखा ,--'अकबर '| इस पर अनेक कवियों ने अकबर की प्रशंसा में कविताएँ बनाई और पुरस्कार पाया | महाकवि गंग भी उस उस सम्मलेन में गये ,पर झूठी प्रशंसा करने को तैयार न हुए | बादशाह ने कवि गंग से कहा -"आपको भी कुछ न कुछ अवश्य सुनाना पड़ेगा | "कवि ने कहा -"मुझसे मिथ्या प्रशंसा की आशा न करें ,जो यथार्थ है वही कहूँगा | भले ही आप नाराज हो जायें | "कवि गंग ने कविता बनाई और सुनाई | उसमे अकबर तथा उसके पूर्वजों द्वारा किये गये अत्याचारों का वर्णन था | भरे दरबार में अपनी निन्दा इस प्रकारअकबर आग बबूला हो गया | अकबर ने कवि गंग को हाथी के पैर के नीचे कुचलवा देने का प्राण दंड दिया  |
कवि गंग को ऐसी ही संभावना का भान भी था | इस मृत्यु दंड को कार्यान्वित होते हुए देखने के लिये अनेक लोग एकत्रित हुए | बादशाह स्वयं भी यह देखने आये कि कवि बड़ा निर्भीक बनता था ,देखें मृत्यु के समय वह निर्भीकता रहती है या नहीं |
कवि गंग ने मृत्यु के पूर्व एक कविता बनाई और सभी उपस्थित जनों को सुनाई | प्रशिक्षित हाथी उन्हें कुचलने को तैयार खड़ा था |
इस कविता में बड़ी सुंदर कल्पना थी --कहा गया कि स्वर्ग लोक में देवताओं ने कवि सम्मेलन बुलाया ,सब उपस्थित होकर अपनी बनाई कविता सुनाते गये ,पर कवि गंग उनके दरबार में बिना बुलाये नहीं गये ,उन्हें अपने स्वाभिमान का बोध था |
तब देवताओं ने सोचा स्वाभिमानी गंग को अपनी पीठ पर बिठाकर स्वर्ग ले आने के लिये किसी बुद्धिमान देवता को भेजना चाहिये | इसके लिये उपयुक्त गणेशजी ही हो सकते हैं | कवि को अपनी पीठ पर बिठाकर लाने के लिये हाथी रूपी गणेशजी को भेजा है ,वे ही मेरे सामने स्वर्ग ले जाने के लिये खड़े हैं | कविता की अंतिम पंक्ति थी --"कवि गंग को लेन गणेश पठायो | "
कवि को हाथी ने पैर से कुचल दिया ,पर वे मरते समय तक अपनी कल्पना में मस्त थे | मृत्यु को उन्होंने स्वर्ग का निमंत्रण और उनके स्वाभिमान की रक्षा करने वाला बुलावा ही माना | बादशाह सहित सभी दर्शक आश्चर्यचकित रह गये कि मृत्यु जैसे कष्ट को को भी उन्होंने सुख स्वप्न में परिणत कर लिया |