4 April 2013

self -control

'मन के हारे हार है ,मन के जीते जीत '
रोग की जड़ें शरीर में नहीं ,मन में होती हैं | अधिकतर समस्याएं ,विकृति,एवं विकार ,आध्यात्मिक जीवन -द्रष्टि के अभाव में पनपते हैं | यदि पीड़ित व्यक्ति की जीवन द्रष्टि सुधार दी जाये तो समस्या का समाधान हो जाता है | विचार एवं चिंतन प्रणाली को स्वस्थ ,श्रेष्ठ ,पवित्र एवं सकारात्मक रखकर ही शरीर एवं मन -मस्तिष्क को स्वस्थ एवं प्रसन्न रखा जा सकता है | मानसिक संकल्प की द्रढ़ता के आगे असाध्य रोग भी ठीक होते देखे गये हैं | 

THE PRESERVATION OF HEALTH IS DUTY

समर्थ वैद्द जीवक अपने एक रोगी को लेकर चिंतित थे | वह पूर्ण रूप से स्वस्थ था ,बस उसकी एक आँख नहीं खुलती थी | जीवक अपने स्तर पर सारी जाँच कर चुके थे | शरीर के सभी अंगों के साथ आँख के भी सभी अवयव सामान्य थे | थककर उन्होंने महास्थविर रैवत ,जो तथागत के शिष्य थे ,अपनी कथा सुनाई |
रैवत मानवीय चेतना के ज्ञाता थे | सब जानने के बाद वे बोले -"जीवक !तुम्हारे रोगी की समस्या शारीरिक नहीं ,मानसिक है | उसने अपने जीवन में नैतिकता की अवहेलना की है | इसी वजह से यह ग्रंथि बनी है | प्रभु के प्रेम की ऊष्मा उसे अपनी मनोग्रंथि से मुक्त कर देगी | जाओ !इसे भगवान बुद्ध के पास ले जाओ | "
उस रोगी ने अपने सभी गलत कार्य ,मन की व्यथा प्रभु को सुना दिये | भगवान ने उसके मस्तक पर हाथ फेरा | उसकी आँख खुल गई ,रोग से मुक्ति मिली | उसके द्वारा पूर्व में किये गये गलत कार्यों के प्रायश्चित हेतु उसे जनसेवा का व्रत दिलाया गया ।
अनैतिकता समाज से मिटे तो बहुत से असाध्य रोग सहज ही नष्ट हो जायेंगे |