24 March 2013

MERCY

'मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है ',राजकुमार सिद्धार्थ और मंत्री पुत्र देवदत्त दोनों बाग में घूमने जा रहे थे | सहसा सिद्धार्थ ने देखा दो सुंदर राजहंस आकाश में जा रहे हैं | उन्होंने प्रसन्न होकर कहा -देवदत्त !देखो कितने सुंदर पक्षी जा रहे हैं | देवदत्त ने ऊपर देखा और अपना धनुष -बाण उठाकर ,एक पक्षी को मार गिराया | सिद्धार्थ की प्रसन्नता ,शोक और व्याकुलता में बदल गई | सिद्धार्थ ने रक्त से सने राजहंस को गोदी में उठा लिया और रोने लगे | देवदत्त ने कहा -"इसे मैंने बाण से मारा है इसलिये इस पक्षी पर मेरा अधिकार है "| सिद्धार्थ बिना कुछ कहे सुने अपने महल चले गये और बड़े प्यार से पक्षी की सेवा करने लगे | देवदत्त ने न्याय के लिये राजा से शिकायत की | महाराज ने दोनों को दरबार में बुलाया | एक ओर देवदत्त खड़े थे और दूसरी ओर सिद्धार्थ पक्षी को गोद में लेकर खड़े थे | देवदत्त ने अपना तर्क प्रस्तुत किया कि मैंने पक्षी को बाण मारा है इसलिये इस पर मेरा अधिकार है | सिद्धार्थ ने कहा मैंने इसे बचाया है इसलिये इस पर मेरा अधिकार है | दोनों के तर्क सुनने के बाद महाराज ने पक्षी को दोनों के बीच में छुडवा दिया और वह पक्षी स्वयं सिद्धार्थ के पास चला गया | इसी भावना ने उन्हें विश्वमानव भगवान बुद्ध बनाया |