20 March 2013

बहिरंग का सौंदर्य आकर्षक है ,सम्मोहक है तथा प्रत्यक्ष दिखायी देता है | अंतरंग का सौंदर्य दिखाई नहीं देता किंतु व्यक्ति की मुखाकृति से लेकर उसके शालीन व्यवहार तथा संवेदना में सतत मुखरित होता रहता है | जिस सौंदर्य एवं आत्म तेज की शक्ति का भंडार भीतर भरा पड़ा है उसे देखा भले ही न जा सके किंतु उसी के बलबूते किसी का व्यक्तित्व प्रकाशित होता है | बाहरी साधनों से तो मात्र शरीर की सुव्यवस्था व सुसज्जा ही संभव हो पाती है |
एक युवक ने महर्षि रमण से पूछा -"जीवन में बचाने जैसा क्या है ?"महर्षि ने कहा -"स्वयं की आत्मा और उसका संगीत | "इतना कहकर उन्होंने उसे एक वृद्ध संगीतकार की कथा सुनाई | उन्होंने कहा -"एक बूढ़ा संगीतकार एक बार घने वन से गुजर रहा था ,उसके पास हजारों स्वर्ण मुद्राएँ थीं | राह में कुछ डाकुओं ने उसे घेर लिया और उसका सारा धन तथा उसकी वीणा भी उससे छीन ली | संगीतकार ने डाकुओं से प्रार्थना की कि वे उसकी वीणा वापस कर दें | "
"डाकू चौंके कि यह बूढ़ा स्वर्ण मुद्रा न मांगकर वीणा क्यों वापस मांग रहा है | उन्होंने उसकी वीणा व्यर्थ समझकर वापस कर दी | वृद्ध प्रसन्न होकर वीणा बजाने लगा ,उस अँधेरी रात में वीणा के स्वर गूंज उठे ,शुरू
में तो डाकुओं ने इस पर ध्यान नहीं दिया लेकिन थोड़ी देर बाद उनकी आँखे भीग गईं | वे सब बूढ़े के पैरों पर गिर पड़े एवं उसका सारा धन वापस कर दिया | 
कथा सुनाकर महर्षि बोले -"यही दशा मनुष्य की है ,जो प्रतिदिन लूटा जा रहा है ,लेकिन इसमें बुद्धिमान वह है जो अपनी आत्मा के प्रति सचेत है ,उसके संगीत को बचा लेता है | जो ऐसा करता है ,उसका स्वयं ही सब कुछ बच जाता है | "