15 March 2013

TRUE LOVE

वासना ,तृष्णा और अहंता से मुक्त भावनाओं का नाम प्रेम है | प्रेम केवल दिया जाता है उसमे पाने की मांग नहीं होती | सच्चा प्रेम सेवा ,करुणा एवं श्रद्धा के रूप में प्रकट होता है | गेटे की एक कविता है -प्रेमी प्रेमिका से कहता है -"यह देह तो अंतत:मिट्टी में मिल जायेगी ,पर इसकी कर्मठता सदा अविस्मरणीय बनी रहेगी ,दूसरों को प्रेरणा देती रहेगी ,हाथों की भवितव्यता को भी गल गल कर समाप्त होना है ,पर इसकी कुशलता लोगों के मन -मस्तिष्क में बनी रहेगी | पैर भी अब असमर्थ हो चले हैं ,किंतु समाज को इसने जो गति व दिशा दी है ,वह निश्चित रूप से अभिनंदनीय और चिरस्थायी बन कर रहेगी | कानों ने सदा अच्छे सुने ,आँखों ने सर्वत्र सुदर्शन किये ,चिंतन -चेतना ने इन्ही को सुंदर काव्य का रूप दिया | वाणी ने जब इनकी तान छेड़ी ,तो वह इतना मधुमय और महान बन गया कि अमर गीत की तरह लोगों के दिलों में स्थायी स्थान बना लिया | अत:हे प्रियतमे !तुम मेरे इस नाशवान शरीर से नहीं वरन अनश्वर ऐश्वर्य से ,आंतरिक गुणों से अनुराग कर | "कितना उच्च कोटि का आदर्श है इस प्रेमी का ,जो शारीरिक आकर्षण में विश्वास नहीं रखता ,सद्गुणों का उपासक है और इसी की शिक्षा अपनी प्रेयसी को देता है |
वासना और तृष्णा की खाई इतनी चौड़ी और गहरी है कि उसे पाटने में कुबेर की संपदा और इंद्र की समर्थता भी कम पड़ती है |
बढ़त -बढ़त संपति सलिल मन सरोज बढ़ जाय | घटत -घटत फिर न घटे बस समूल कुम्हलाय | भाव यह है कि कमल का फूल पानी में डूबता नहीं है | पानी बढ़ने से कमलनाल बढ़ती जाती है ,पर पानी घटने से घटती नहीं है ,समूल कुम्हला जाती है | सम्पतिवानों की इच्छाएं असीम बढ़ती जाती हैं ,पर जैसे ही संपति गई ,इच्छाएं घटती नहीं आदत बनी रहती हैं |
महाराज ययाति ने सब सुख भोगे ,तृष्णा बढ़ती चली गई | देह जवाब दे गई ,मृत्यु आने को थी | औरों से पुण्य लेकर समय बढ़ा लिया ,वह काल भी समाप्त हो गया | काल आ गया | बोला -"जवानी किसी और से मांग लो | "ययाति ने अपने बेटों से भोगने के लिये जवानी मांगी सबसे छोटा बेटा पुरु बोला -"आप जवानी मुझसे ले लें | जिन इंद्रियों से आपकी तृष्णा शांत नहीं हुई ,हमारी क्या होगी -आप भोग लें | "तृष्णा कभी जीर्ण -कमजोर नहीं होती ,हम ही जीर्ण होते चले जाते हैं |