6 March 2013

UNDERSTANDING--WAY OF LIFE

हम सबको इतिहास की भीषणतम लड़ाई लड़नी है ,परन्तु यह लड़ाई स्वयं से लड़नी है -यह युद्ध अपने अंतर्जगत के  विकारों से करना है -अनीति के विरुद्ध जीवन मूल्यों के लिए यह महासंग्राम है | मनुष्य की अंतरात्मा उसे ऊँचा उठने के लिए कहती है लेकिन सिर पर लदी दोष -दुर्गुणों की भारी चट्टानें उसे नीचे गिरने को बाधित करती हैं | स्वार्थ सिद्धि की ललक उसकी बुद्धि को भ्रमित कर देती है ,वह लाभ को हानि और हानि को लाभ समझता है | वासनाएँ आदमी को नीबू की तरह निचोड़ लेती हैं ,जीवन में से स्वास्थ्य ,आयुष्य सब कुछ निचोड़कर उसे छिलके जैसा निस्तेज कर देती हैं |
भूल समझ आने पर उल्टे पैरों लौट आने में कोई बुराई नहीं है | मकड़ी अपने लिए अपना जाल स्वयं बुनती है | उसे कभी -कभी बंधन समझती है तो रोती भी है ,किंतु जब भी वस्तु स्थिति की अनुभूति होती है तो समूचा मकड़ जाल समेट कर उसे गोली बना लेती है और पेट में निगल लेती है तथा अनुभव करती है कि सारे बंधन कट गये और वेदनाएँ सदा के लिए समाप्त हो गईं इसी तरह मनुष्य अपने स्तर की दुनियां अपने हाथों रचता है ,वही अपने हाथों गिरने के लिए खाई खोदता है | वह चाहे तो उठने के लिए समतल सीढ़ियों वाली मीनार भी चुन सकता है | मनुष्य अपनी विवेक शक्ति को जाग्रत कर संकल्प भरी साहसिकता से अपने व्यक्तित्व और कर्तव्य को ऊँचा उठाकर महानता की मंजिल तक पहुंच सकता है |
मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है |
भाग्य और पुरुषार्थ जिंदगी के दो छोर हैं | जिसका एक सिरा वर्तमान में है तो दूसरा हमारे जीवन के अतीत में अपना विस्तार लिए हुए है | भाग्य का दायरा बढ़ा है जबकि पुरुषार्थ के पास अपना कहने के लिए केवल एक पल है ,जो अभी अपना होते हुए भी अगले ही पल भाग्य के कोष में जा गिरेगा | पुरुषार्थ आत्मा की चैतन्य शक्ति है ,जबकि भाग्य केवल जड़ कर्मों का समुदाय | जिस तरह छोटे से दीखने वाले' सूर्य मंडल के उदय होते ही तीनों लोकों का अंधेरा भाग जाता है ठीक उसी तरह पुरुषार्थ का एक पल भी कई जन्मों के भाग्य पर भारी पड़ता है |
पुरुषार्थ की प्रक्रिया यदि निरंतर अनवरत एवं अविराम जारी रहे तो पुराने भाग्य के मिटने और मनचाहे नये भाग्य के बनने में देर नहीं | पुरुषार्थ का प्रचंड पवन आत्मा पर छाए भाग्य के सभी  | आवरणों को छिन्न -भिन्न कर देता है | तब ऐसे संकल्पनिष्ठ पुरुषार्थी की आत्म शक्ति से प्रत्येक असंभव संभव और साकार होता है | तभी तो ऋषि वाणी कहती है -'मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है|