इमर्सन -"आओ हम चुप रहें ,ताकि फरिश्तों के वार्तालाप सुन सकें ।"सुप्रसिद्ध मनीषी रहती ऐडवर्ड इवरेट हेल अपनी रचना में एक छोटी बालिका के संबंध में लिखते हैं कि वह पक्षियों और वन्य जीवों के साथ खेला करती थी और बीच -बीच में पास में बने मंदिर में प्रार्थना करने के लिए जाया करती थी ।प्रार्थना करने के बाद कुछ देर बिलकुल शान्त होकर रहती वहीँ बैठी रहती ।पूछने पर कारण बताते हुए कहती कि मैं देर तक चुपचाप इसलिए बैठी रहती हूँ ताकि यह सुन सकूँ कि ईश्वर मुझसे कुछ कहना तो नहीं चाहता ।'शान्त और एकाग्र मन से ही उनसे वार्तालाप संभव है ।मौन रहकर ही अपने अन्तराल में उतरने वाले ईश्वर के दिव्य संदेशों ,को सुना समझा जा सकता है ।
16 February 2013
जो पवित्र नहीं उदार नहीं ,उनका जप -तप निरर्थक है ।मात्र कर्मकांडों के सहारे कोई पुण्य लोक तक नहीं पहुंचता ।एक बार पार्वतीजी ने शिवजी से पूछा -"भगवन !लोग इतना कर्मकांड करते हैं फिर भी उन्हें आस्था का लाभ क्यों नहीं मिलता ?"शिवजी बोले -"धार्मिक कर्मकांड होने पर भी मनुष्य जीवन में जो आडम्बर छाया हुआ है ,यही अनास्था है ।लोग धार्मिकता का दिखावा करते हैं ,उनके मन वैसे नहीं हैं ।"परीक्षा लेने दोनों धरती पर आये ।माँ पार्वती ने सुंदर साध्वी पत्नी का और शिवजी ने कोढ़ी का रुप धारण किया ।मंदिर की सीढ़ियों के समीप वे पति को लेकर बैठ गईं ।लोग दर्शन के लिए आते रहे ,कुछ पल पार्वतीजी को देखकर आगे बढ़ जाते ।शिवजी को गिने -चुने कुछ ही सिक्के मिले ।कुछ दानदाताओं ने तो संकेत भी किया कि कहां इस कोढ़ी पति के साथ बैठी हो ,इन्हें छोड़ दो ।पार्वतीजी सहन नहीं कर पाईं ।बोलीं-"प्रभु !लौट चलिए कैलाश पर ,अब इन पाखंडियों का यह कुत्सित रुप सहन नहीं होता ।"इतने में ही एक दीन -हीन भक्त आया ,पार्वतीजी के चरण छुए और बोला -"माँ आप धन्य हैं पति परायण हैं ।मैं इनके घावों को धो दूं ,आप दोनों यह सत्तू खा लें ।भक्त ने उनके घावों पर पट्टी बांधी और सत्तू थमाकर आगे बढ़ा ।तभी शिवजी ने कहा -"यही है एकमात्र भक्त जिसने निष्कपट भाव से सेवा धर्म को प्रधानता दी ।ऐसे लोग गिने -चुने हैं शेष तो धार्मिकता का दिखावा करते हैं ।शिव -पार्वती ने उस भक्त को दर्शन दिए ,वरदान दिया और कैलाश लौट गए ।
Subscribe to:
Posts (Atom)