6 January 2013

मनुष्य का मन ऐसा हो जैसा बाग का रखवाला माली होता है ।माली का काम केवल पौधा लगाना नहीं ,वरन`फूलों के पौधों के आस -पास उगने वाली अनावश्यक झाड़ -झंखाड़ को भी उखाड़ फेंकना है ।गुणों की पौध भी तभी अंकुरित एवम पल्लवित हो सकती है ,जब मानसिक विकारों को समय -समय पर मस्तिष्क से निकाला जाता रहे ।मनुष्य जीवन की पवित्रता के लिये शारीरिक स्वच्छता ही काफी नहीं आन्तरिक सफाई भी चाहिये ।

GREED

दर्जी बीमार पड़ा ।मरने की नौबत आ गई ।एक रात उसने सपना देखा कि वह मर गया है और कब्र में दफनाया जा रहा है ।बड़ा हैरान हुआ देखकर कि कब्र के चारों ओर रंग -बिरंगी झंडियाँ लगी हैं ।उसने पास खड़े फरिश्ते से पूछा कि ये झंडियाँ क्यों लगी हैं ?फरिश्ते ने कहा -"जिन जिन के कपड़े तुमने जीवन भर चुराये ,उनके प्रतीक के रूप में ये झंडियाँ लगी हैं ।परमात्मा इनसे तुम्हारा हिसाब -किताब करेगा ।"झंडियाँ अनगिनत थीं ।घबराहट इतनी बड़ी कि दर्जी की ऑंखें खुल गईं ।कुछ दिन के बाद जब वह ठीक हुआ तो दुकान पर आया ।उसने अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को हिदायत दी ।देखो मुझे अपने पर भरोसा नहीं है ।जब भी कीमती कपड़ा आता है ,मैं ललचा जाता हूँ ।इस पुरानी आदत को बुदापे में बदलना कठिन है ।तुम सब एक ख्याल रखना कि जब भी मुझे कपडा चुराते देखो तो इतना भर कह देना "उस्तादजी ,झण्डी "बस मैं सचेत हो जाऊंगा ।शिष्यों ने पूछा -"इसका मतलब ?उसने कहा -इस सबमें तुम मत उलझो मेरे लिये बस इतना इशारा ही काफी है ।एक सप्ताह तक तो शिष्य उस्ताद को झण्डी की याद दिलाकर रोके रहे ।किन्तु इसके बाद तो बड़ी मुसीबत हो गई ।किसी ग्राहक का विदेशी सूट सिलने आया ।उस्ताद ने पीठ फेरी और लगा चोरी करने ।शिष्यों ने टोका -उस्ताद जी झण्डी ।बार -बार सुनने पर उस्ताद चिल्लाया -बंद करो बकवास ।अपना काम करो ।तुम्हे कुछ पता भी है ,वहां इस रंग की झण्डी थी ही नहीं यदि इतनी झंडियां लगी हैं तो एक झण्डी और लग जायेगी ।_उथले नियम जीवन को दिशा नहीं दे पाते ।सपनों में सीखी बातें जीवन का सत्य नहीं बन पातीं ।भय के कारण लोभ कितनी देर संभला रहेगा ।लोभ को ,स्वयं पर कड़ा अंकुश लगाकर नियंत्रित करना पड़ता है ।