29 April 2013

HUMANITY

'उस परिमित और संकुचित स्वार्थ को त्याग देना,जो सम्पूर्ण वस्तुओं को अपने ही लाभ के लिये चाहता है | सच्चा स्वार्थ परमार्थ में ही निहित है | स्वार्थ इनसान को संवेदनहीन कर देता है | आज जीवन इतना यांत्रिकीय हुआ है कि सेवा ,सहयोग ,भाव - संवेदना से व्यक्ति का नाता ही टूट गया है | 'स्व 'कीपरिधि में सिमटा लोगों का जीवन  संवेदनहीन हो गया है | इस संकीर्ण एवं क्षुद्र दायरे को तोड़कर ही जीवन की व्यापकता का आनंद उठाया जा सकता है |
स्वार्थ हमें बांधता है जबकि परमार्थ ,सेवा ,त्याग ,सहयोग ,सहायता आदि हमें असीम बनाते हैं ,जीवन का सही स्वरुप दिखाते हैं | जीवन भावना ,संवेदना ,करुणा ,सेवा ,व्यवहार एवं पुरुषार्थ का अदभुत समुच्चय है | इन दिव्य विशेषताओं को विकसित करने के लिये आवश्यक है कि हम अपने संकीर्ण स्वार्थ की मोटी दीवार को ढहा दें और अंतरात्मा की कोठरी के वातायनों को खोल दें ,त्याग ,सेवा ,सहायता रूपी प्रेरणाप्रद प्रकाश को अंदर  आने दें तथा इंसानियत की सुगंधित बयार से इसे महकने दें |

                     'भक्ति 'का अर्थ है -भावनाओं की पराकाष्ठा और परमात्मा एवं उसके असंख्य रूपों के प्रति प्रेम | यदि पीड़ित को देख अंतर में करुणा जाग उठे ,भूखे को देख अपना भोजन उसे देने की चाह मन में आये और भूले -बिसरों को देख उन्हें सन्मार्ग पर ले चलने की इच्छा हो ,तो ऐसे ह्रदय में भक्ति का संगीत बजते देर नहीं लगती | सच्चे भक्त की पहचान भगवान के चित्र के आगे ढोल -मंजीरा बजाने से नहीं ,बल्कि गए -गुजरों और दीन -दुखियों को उसी परम सत्ता का अंश मान कर ,उनकी सेवा करने से होती है | 

28 April 2013

AIMS AND OBJECTS

'सच्ची लगन और एक निष्ठा के साथ विवेकपूर्ण प्रयत्न करने से ही सफलता प्राप्त होती है |
                   एक लड़के ने बहुत धनी आदमी देखकर धनवान बनने का निश्चय किया | कई दिन तक वह कमाई में लगा रहा | इसी बीच उसकी भेंट एक विद्वान् से हो गई ,अब उसने विद्वान् बनने का निश्चय किया और कमाई छोड़कर पढ़ने में लग गया | अभी कुछ ही पढ़ पाया था कि उसकी भेंट एक संगीतज्ञ से हुई | उसे संगीत में आकर्षण दिखा तो पढ़ाई बंद कर संगीत सीखने लगा |
          बहुत उम्र बीत गई ,न वह धनी हो सका न विद्वान् और न ही संगीत सीख पाया | तब उसे बड़ा दुःख हुआ | एक दिन उसकी एक महात्मा से भेंट हुई ,उसने अपने दुःख का कारण बताया |
महात्मा बोले -"बेटा !दुनिया बड़ी चिकनी है ,जहां जाओगे कोई न कोई आकर्षण दिखाई देगा | एक निश्चय कर लो और फिर जीते -जी उसी पर अमल करते रहो तो तुम्हारी उन्नति अवश्य हो जायेगी | बार -बार रूचि बदलते रहने से कोई भी उन्नति न कर पाओगे | "युवक समझ गया और अपना एक उद्देश्य निश्चित कर उसी का अभ्यास करने लगा |
मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्माण तभी होता है जब उसकी स्वाभाविक प्रवृतियाँ एक लक्ष्य को द्रष्टि में रखकर व्यवस्थित की जाती हैं | 

27 April 2013

AS YOU SOW YOU WILL REAP

बहुत वर्ष पूर्व की बात है ,मथुरा नगरी में धनासुर नाम का धनी व्यक्ति रहता था | सब सुख -सुविधाएं होते हुए भी वह बहुत कंजूस था | एक दिन उसे समाचार मिला कि व्यापार को निकला उसका जहाज समुद्र में डूब गया | उसके अगले दिन ही उसके गोदामों में आग लग गई ,वह इन शोक समाचारों से उबर भी नहीं पाया था कि महल में चोरी हो गई उसका सारा खजाना लूट लिया गया | अचानक सम्पन्नता के छिन जाने से उसकी मानसिक स्थिति बिगड़ गई और वह नगर की गलियों में विक्षिप्त की भांति घूमने लगा |
                                     ऐसी दशा में घूमते -घूमते उसकी भेंट मुनि धम्म कुमार से हुई | उनके मुख पर एक गंभीर शांति एवं धैर्य था | धनासुर ने मुनि से पूछा -"मुनिवर !मुझे बताएं कि किन कर्मों के कारण मैं इतने अकूत धन का स्वामी बना और किन कर्मों के कारण मैं इस स्थिति को प्राप्त हुआ | मुनि बोले -वत्स !वर्षों पूर्व अंबिका नगरी में दो भाई रहा करते थे | बड़ा भाई धर्म ,दान ,पुण्य के मार्ग पर चलता था और छोटा भाई सदैव अधर्म ,अनाचार का पथ अपनाता | निरंतर दान करने के बाद भी बड़े भाई की धन -संपदा में वृद्धि होती गई ,जबकि अनाचार और लोलुपता के पथ पर चलने वाले छोटे भाई का व्यापर यथावत बना रहा | ईर्ष्या वश छोटे भाई ने बड़े भाई की हत्या करा दी | कालांतर में छोटे भाई का जन्म एक धनी परिवार में असुर संस्कारों के साथ हुआ | वो छोटे भाई तुम ही हो ,जो अपने पूर्व जन्म के पापों का दंड भुगत रहे हो | "
             धनासुर ने पूछा -"मेरे बड़े भाई का क्या हुआ ?"मुनि हँसे और बोले -"तुम अभी उनसे ही बात कर रहे हो | "यह सुनते ही धनासुर का ह्रदय परिवर्तन हो गया और वो धम्म कुमार से दीक्षा लेकर भिक्षु बन गया | 

SUKH AUR AANAND

'शरीर को जहां भौतिक सुविधाओं और साधनों से सुख मिलता है ,वहीं आत्मा को परमार्थ में सुख की अनुभूति होती है | जब तक परमार्थ द्वारा आत्मा को संतुष्ट न किया जायेगा ,उसकी मांग पूरी न की जायेगी ,तब तक सब सुख -सुविधाएं होते हुए भी मनुष्य को एक अभाव ,एक अतृप्ति व्यग्र करती रहेगी | शरीर अथवा मन को संतुष्ट कर लेना भर ही वास्तव में सुख नहीं है | वास्तविक सुख है -आत्मा को संतुष्ट करना ,उसे प्रसन्न करना | आत्मा को सुख का अनुभव ,आनंद की अनुभूति का एकमात्र साधन है --परमार्थ | परमार्थ का व्यवहारिक रूप है -सेवा | जो काम उच्च और उज्जवल उद्देश्यों की पूर्ति के लिये किये जाते हैं ,वे परमार्थ हैं | जिन कार्यों से आत्मा का विकास सधता हो ,वह परमार्थ है ,इसलिये सेवाभावी का जीवन ही सफल और सार्थक कहा जा सकता है | '
                   जिसकी अंतरात्मा में विश्व मानव की सेवा करने ,इस संसार को अधिक सुंदर -सुव्यवस्थित एवं सुखी बनाने की भावनाएं उठती रहती हैं और इस मार्ग में चलने की प्रबल प्रेरणा होती है ,वस्तुत:सच्चा परमार्थी और ईश्वर भक्त वही है | 

26 April 2013

ISHVAR VISHVAS

इटली के वीर गैरीबाल्डी ने अपनी जीवन कथा में लिखा है -"युद्ध में मेरी विजय और साहस को देखकर मेरे मित्र बड़े विस्मय में हैं और वे यह समझते हैं कि मैं किसी दैवी शक्ति का प्रयोग करता हूँ | पर मैं यहां साफ बता देना चाहता हूं कि मेरे साहस और शौर्य के मूल में ,ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास ही है | मेरा विश्वास है कि जब तक मेरी माता मेरे प्राण -रक्षार्थ ईश्वर के ध्यान में निमग्न रहेंगी ,तब तक मुझ पर कोई विपति नहीं पड़ सकती | मैं ईश्वर के भरोसे बिलकुल निश्चिन्त हूँ | "
                इस युद्ध में भीषण रक्तपात हुआ ,गैरीबाल्डी के पास से सनसनाती हुई गोलियां छूटती रहीं ,गोले दगते रहे पर उनके जीवन को आंच नहीं आई |

 "          जिस परमात्मा को बड़े -बड़े ज्ञानी -ध्यानी भी योग साधनायें करके भी नहीं जान पाते उसे भक्त अपनी निष्ठा ,विश्वास और भावना के द्वारा प्राप्त कर लेते हैं | 

LIFE

जीवन एक अवसर है ,जिसे यदि गँवा दिया जाये तो हाथ से सब कुछ चला जाता है और यदि उसका सही उपयोग कर लिया जाये तो प्रगति के चरम शिखर पर पहुंचा जा सकता है | जीवन एक चुनौती है ,संग्राम है ,इसे किस प्रकार सफल बनाया जा सकता है ,जिसने इस रहस्य को जान लिया और जीवन में उतार लिया ,समझना चाहिये कि वह सच्चा रत्नपारखी और उपलब्ध विभूतियों का सदुपयोग कर सकने वाला भाग्यशाली है |
जीवन न तो चमत्कार से चलता हैऔर न ही अंधविश्वास के साये में पलता -बढ़ता है | जीवन एक यथार्थ है और इसे कड़वी हकीकत से सामना करना पड़ता है ,गुजरना पड़ता है | किसी चमत्कार के सहारे जीवन की दशा और दिशा को बदला नहीं जा सकता | जीवन ओझाओं ,बाबाओं और तांत्रिकों के हाथ की कठपुतली नहीं है | यदि ऐसा होता तो अंधविश्वास के ये शागिर्द सबसे पहले स्वयं को ही बदल लेते | किंतु ये न स्वयं को बदल सकते हैं और न ही दूसरों के भाग्य में हाथ डाल सकते हैं |
अंधविश्वास में प्रमाणिकता कहां है ,यथार्थ रूप से विश्वास कहां है ,सब कुछ अँधेरे में चलता है | दिशा तो दिन के उजाले में मिलती हैअंधविश्वासी चाहता है कि बीज को डाले बगैर पेड़ फले -फूले ,वह मेहनत के बिना शार्टकट  का रास्ता अपनाकर सब कुछ पा जाना चाहता है |
जीवन किसान के उस खेत के समान है ,जिसमे फसल तो उगती है ,अनाज भी मिलता है ,परंतु कड़ी मेहनत एवं धैर्य पूर्वक सब कुछ समय साध्य होता है | ऐसा नहीं होता कि आज बीज बोया और कल फसल तैयार हो जाये | सब समय के साथ ,निश्चित क्रम के साथ होता है और इसके लिये असीम धैर्य तथा लगन -निष्ठा की जरुरत होती है |
                       हमें अंधविश्वासी नहीं ,ईश्वर विश्वासी होना चाहिये -यही जीवन के विकास का मूल मंत्र है | 

25 April 2013

'सोये आत्मविश्वास को जगाना ही सफलता का मूल मंत्र एवं गुप्त रहस्य है '

                     इंग्लैंड के मिस्टर कौबडैन एक बार व्याख्यान देने खड़े हुए लेकिन एक शब्द भी नहीं बोल पाये | लोग खिलखिला कर हँसने लगे और उन्हें स्टेज से नीचे उतार दिया गया | उन्होंने एक शब्द भी न बोल पाने के लिये सभापति से क्षमा मांगी और कोने में दुबके अपनी असफलता पर आँसू बहाने लगे |
                    लेकिन दूसरे ही क्षण उनने हिम्मत बांधी ,आत्मविश्वास जगाया ,स्वयं से कहा -उठ फिर प्रयत्न कर ,सफलता तो पुरुषार्थी की चरणदासी है ,आज नहीं तो कल सही ,हिम्मत न हार |
         कौबडैन फिर से पढ़ने लगे | एक -एक विषय के सैकड़ों द्रष्टान्त और आंकड़े उसने रट लिये | एकांत में अभ्यास ,मित्रों में अभ्यास ,छोटी -छोटी पार्टियों और क्लबों में अभ्यास करते -करते वह एक दिन इंग्लैंड का सर्वश्रेष्ठ वक्ता बन बैठा |  

SELF CONFIDENCE

आत्मविश्वास का अर्थ है -स्वयं पर विश्वास ,स्वयं के अस्तित्व पर विश्वास | जो | ,स्वयं पर विश्वास करता है वह ईश्वरपर भी विश्वास करता है | आत्मविश्वास साहस का पर्याय है ,जो रग -रग में दौड़ता है | यह अंतर की पुलकन है ,आँखों की चमक तथा अधरों की मुस्कान है | यह वह जादुई अदभुत शक्ति है ,जो भीषण कठिनाइयों का सामना सरलता से कर लेती है |
आत्मविश्वास पथ की विध्न -बाधाओं को दूर करने का एक महामंत्र है | इसमें कठिनाइयों के विशाल पर्वतों को लाँघ जाने की अपार क्षमता होती है | आत्मविश्वास जब अंतर में उमगता है ,तो शक्ति और सामर्थ्य दोगुनी हो जाती है | जिसका विश्वास प्रखर होता है उसे परिस्थितियां झुका नहीं पातीं | अंतर में विश्वास की मशाल जलाने वाला हर असफलता से सीख लेता है एवं दूने उत्साह के साथ जुट जाता है | उसके अंदर साहस का दावानल धधकता है ,जिसकी लपटों में हताशा -निराशा वाष्प बनकर उड़ जाती है | ऐसे व्यक्ति कभी परास्त नहीं होते ,उनकी हार भी जीत के साथ लिखी जाती है |
            सफलता पाने के लिये अंदर के आत्मविश्वास को जगाना आवश्यक है यह एक दैवी विभूति है ,इसी के द्वारा ही ऋद्धि -सिद्धियों की अपार संपदा अर्जित की जा सकती है | 

SELF IMPORTANCE

मनुष्य स्रष्टि का सबसे समुन्नत ,ईश्वरीय शक्तियों से भरा हुआ ,असीम शक्तियों को धारण किये हुए सबसे शक्तिशाली प्राणी है | बुद्धि और ज्ञान इसके मुख्य गुण हैं ,जिनके बल पर यह संसार के सब प्राणियों का सम्राट है | इस सत्य का ज्ञान जिसे हो जाये वह मनुष्य श्रेष्ठतम कर्तव्य पथ पर चलता है |
जिसने अपने को जितना मूल्यवान समझा संसार से उसका उतना ही मूल्य प्राप्त हुआ | हमें उतना ही सम्मान ,यश प्रतिष्ठा ,प्रसिद्धि प्राप्त होती है ,जितना कि हम स्वयं अपने व्यक्तित्व का लगाते हैं |
मनुष्य के मन में ऐसी अदभुत गुप्त चमत्कारी शक्तियां दबी पड़ी रहती हैं कि वह जिन गुणों का चिंतन करता है ,गुप्त रूप से वे दिव्य गुण उसके चरित्र में बढ़ते और पनपते रहते हैं |
आत्म निरीक्षण द्वारा अपने चरित्र का वह दैवी विशिष्ट गुण आप मालुम कर सकते हैं और अभ्यास ,साधना ,चिंतन द्वारा उसे विकसित कर संसार को आश्चर्य में डाल सकते हैं | हो सकता है आप में किसी महान आत्मा का निवास हो "

23 April 2013

CAREFUL

'काम अधूरे मत छोड़ो | या तो हाथ मत डालो या पूरे करके रहो | थोड़ा करो पर पूरे मन से करो | जो बहुत समेटता है पर उन्हें संभाल नहीं पाता ,वह पछताता और हँसी कराता है | '
यदिआप जीवितों का जीवन जीना चाहते हैं तो जाग्रत रहिए ,अपने हर काम को सावधानी और सतर्कता के साथ कीजिये | जाग्रत मनुष्यों को ही जीवन फल मिलता है |
प्रकाश के अभाव का नाम अंधकार है ,इसी प्रकार जागरूकता का अभाव ही लापरवाही है |
लापरवाही एक मानसिक लकवा है ,जिससे आधा मस्तिष्क लुंज -पुंज हो जाता है | ऐसे मानसिक अपाहिज जीवन के भार को किसी प्रकार गिरते -मरते ढोते रहते हैं | उन्नत और संपन्न जीवन तो उनके लिये आकाश कुसुम की भांति दुर्लभ है | जीवन को धूलि में मिला देने वाला यह रोग ,जब रोगी चाहे जा सकता है | यह रोग ठहरता तभी तक है जब तक रोगी उसका विरोध नहीं करता और अपने में उसे ठहरने देता है ,पर जब वह विरोध करने और हटा देने हेतु उतारू हो जाता है तो फिर उसका ठहरना नहीं हो सकता | मन की उदासीनता रूपी बाधा को हटा दिया जाये तो हर एक व्यक्ति पूर्ण रूप से क्रिया -कुशल ,कर्तव्य -निष्ठ ,परिश्रमी ,कर्म -परायण और सफल मनोरथी हो सकता है | 

22 April 2013

ABILITY

हजरत उमर ने एक व्यक्तिको किसी प्रदेश का शासकनियुक्त किया | इसके बाद खलीफा एक पड़ोसी के बच्चे को खिलाने लगे | उसे हँसाने के लिये मुंह बनाने और तरह तरह की जानवरों की बोलियाँ बोलने लगे | नव -नियुक्त शासक आश्चर्य में पड़ गया | उसने कहा -"मेरे पांच बच्चे हैं | उनमे से किसी को मैंने इतने प्यार से नहीं खिलाया ,जितना कि आप पड़ोसी के  बच्चे को प्यार कर रहे हैं | "खलीफा ने नियुक्ति पत्र वापस ले लिया और कहा -"जब तुम अपने बच्चों को प्यार नहीं कर सकते तो मेरी प्रजा को प्रसन्न रखने की बात कैसे सोच सकोगे ?"

                       
                  इंग्लैंड के बादशाह हेनरी पंचम जब युवराज थे ,तब एक बार न्यायधीश ने किसी अपराधी को कानून के अनुसार दंड दिया | इस पर हेनरी ने न्यायधीश से कहा -"मैं युवराज की हैसियत से आदेश देता हूँ कि आप इसे छोड़ दें | "न्यायधीश ने आदेश नहीं माना और कहा -कानून युवराज से बड़ा है | इस पर बौखलाये हेनरी ने न्यायधीश को एक थप्पड़ जड़ दिया | जज ने तुरंत पुलिस बुलाकर उसे जेल में बंद करा दिया ,साथ ही एक नोट लिखकर भेजा -'आगे चलकर आपको इस देश का राजा बनना है | यदि आप ही राज्य के कानूनों का सम्मान नहीं करेंगे ,तो प्रजा आपकी आज्ञा क्यों मानेगी |
हेनरी ने अपनी भूल मानी और माफी मांगी | जब वह राजा बने तब भी उस न्यायधीश की घटना को सदा सराहते रहे |
                

21 April 2013

GOD HATES THOSE WHO PRAISE THEMSELVES

मान ,बड़ाई ,प्रतिष्ठा ,तथा कार्यों में अभिमान प्राप्त करने की इच्छा खाज की भांति बड़ा सुहावना रोग है | इसके वश में हो जाने पर मनुष्य सत्कर्मो तक को अभिमान की अग्नि से भस्म कर देता है ,प्रमादी बन जाता है और अपने भाग्य पर इतराता है तथा अपनी आत्मा का पतन करता है | अभिमान बड़ी संक्रामक बीमारी है ,जोमनुष्य को अधोगति में पहुँचा सकती है |
       जब मनुष्य अपनी ही महिमा का गुणगान अपने मुख से करने लगे ,तो समझना चाहिये कि वह उस महानता से दूर हटता जा रहा है ,जो उसे सहज में उपलब्ध हो सकती थी | क्षुद्र स्तर के लोग ऐसी ही चर्चा में संलग्न रहते हैं और अपना तथा दूसरों का समय बरबाद करते हैं | महानता यत्र -तत्र उल्लेख कर देने भर से व्यक्तित्व में नहीं आ जाती ,न ही यह विज्ञापन का विषय है | वस्तुत:यह एक ऐसी विभूति है ,जो बिना कहे हुए भी सामने वाले को बहुत कुछ कहती बताती रहती है | फूलों को अपनी सुगंध की चर्चा करने की आवश्यकता नहीं होती ,यह काम तो उनकी अदभुत सुवास ही अनायास करती रहती है और अनेको भौरों को मदमस्त करती हुई खींच बुलाती है | महानता बताने की वस्तु नहीं ,वरन करने योग्य कार्य है | महानता बडप्पन प्रदर्शन में नहीं अपितु अनेको का हित साधन करने में है |
सिकन्दर जैसे सफलताओं के धनी भी मुट्ठी बांधे आये और हाथ पसारे चले गये | अहंकार प्रदर्शित करने के दर्प में ,संसार भर को चुनौती देने और ताल ठोकने वाले किसी समय के दुर्दान्त दैत्यों में से अब कोई कहीं दीख नहीं पड़ता !राजाओं के मणि -मुक्तकों से जड़े राजमुकुट और सिंहासन ,न जाने धराशायी होकर कहां धूल चाट रहे होंगे ?

20 April 2013

THANKFUL

कृतज्ञता मनुष्य जाति का ऐसा गुण है कि यदि लोग दूसरे लोगों के उपकार ,उनकी सेवाओं के प्रति थोड़ी सी भी श्रद्धा और सम्मान का भाव रखें तो संसार से कलह और झगड़ों की 90 प्रतिशत जड़ तुरंत नष्ट हो जाये | कृतज्ञता आत्मा की प्यास और उसकी चिरंतन आवश्यकता है |
एक मार्मिक घटना है -एक डाकिया प्रतिदिन डाक लेकर जंगल से गुजरते हुए दूसरे गांव डाक बांटने जाया करता था | एक दिन उसने देखा पेड़ की एक डाल में छोटे से छेद में से निकलने  के प्रयास से एक बंदर फंस गया | वह बंदर तथा अन्य बंदर चिल्ला रहे हैं | डाकिये ने जब यह देखा तो उसे दया आ गई | पहले तो वह भयभीत हुआ किंतु फिर उसने सोचा जब मैं भलाई करना चाहता हूं तो बंदर क्यों बुराई करेंगे | डाकिये के पास कुल्हाड़ी थी ,वह वृक्ष पर चढ़ गया और सावधानी से छेद बड़ा कर उसने फंसे बंदर को बाहर निकाला | सब बंदर चुपचाप वहां से चले गये | किसी ने डाकिये को डराया नहीं |
लगभग एक सप्ताह बाद एक दिन जब पोस्टमैन डाक लेकर जंगल से गुजर रहा था तो उसने देखा  कई बंदर रास्ते के इधर उधर बैठे हैं ,पोस्टमैन के हाथ में कुल्हाड़ी थी इसलिये वह निडर होकर आगे बढ़ता गया | जैसे -जैसे वह आगे बढ़ा बंदर इकट्ठे होते गये उसके पास आ गये | पोस्टमैन को यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि उन बंदरों के हाथ में जंगल में पाया जाने वाला दुर्लभ लाल रंग का फल है | सब बंदरों ने अपने अपने फल पोस्टमैन के पास रख दिये और पल भर में इधर उधर चले गये | यह देखकर उसकी आँखों में आँसू आ गये
         यदि मनुष्य जीव मात्र के प्रति दया का व्यवहार करे ,परस्पर सहयोग की भावना रखें तो संसार की अनेकों समस्याएं स्वत:ही हल हो जायें | 

19 April 2013

'धन संबंधी ईमानदारी और कर्तव्य संबंधी जिम्मेदारी का समन्वय किसी व्यक्ति को प्रमाणिक और प्रतिष्ठित बनाता है | '

         
          'जिसने ईमानदारी खो दी ,उसके पास खोने के लिये और कुछ नहीं बचता '| 

SELF - RESPECT

'आत्म -सम्मान का मर्म आत्म -निष्ठ ,ईश्वर परायण एवं सेवामय जीवन शैली में निहित है | 'जीवन में सफलता एवं प्रसन्नता की अनुभूति का आधार आत्म -सम्मान ,आत्म -गौरव की स्वस्थ भावदशा है |
                                  व्यक्ति आत्म -सम्मान के अभाव में सफल तो हो भी सकता है ,बाह्य उपलब्धियों भरा जीवन भी जी सकता है ,किंतु वह अंदर से भी सुखी ,संतुष्ट एवं संतृप्त होगा ,यह संभव नहीं है | आत्म -सम्मान के अभाव में जीवन एक गंभीर अपूर्णता से भरा रहता है ,जो पग -पग पर जीवन में बहुत कुछ होते हुए भी एक गहरी कमी का एहसास देता रहता है और जीवन एक अज्ञात सी पीड़ा ,असुरक्षा एवं अशांति से बेचैन रहता है | आत्म -सम्मान के अभाव में जीवन की बड़ी से बड़ी ,महान से महान सफलता भी मनुष्य जीवन को सार्थकता की अनुभूति नहीं दे पाती | इस युग की यह त्रासदी उन सभी नेताओं ,शिक्षकों ,कलाकारों एवं व्यक्तियों के साथ घटित होते हुए देखी जा सकती है जिन्होंने मनुष्य जाति को बड़े -बड़े अनुदानों से उपकृत किया ,किंतु अपने जीवन में निम्न आत्म -सम्मान से पीड़ित रहे | कुछ लोग इसी कमी के कारण शराबी ,नशा के आदि या दुर्व्यसनों के शिकार हुए हैं ,कोई आत्म हत्या जैसा वीभत्स कदम भी उठा बैठे | इस तरह आत्म सम्मान की कमी जीवन को नीरस ,दुखमय बनाने वाली गंभीर मनोदशा है |
                                            आत्म -सम्मान का बाहरी उपलब्धियों एवं सफलताओं से बहुत अधिक लेना -देना नहीं है ,यह तो स्व -प्रेम एवं स्व -सम्मान की व्यक्तिगत अनुभूति है | यह व्यक्ति का अपनी नजरों में अपना मूल्य है |
                        अपने जीवन को अंतरात्मा द्वारा निर्धारित उच्चतम मानदंडों पर जीने का प्रयास करें | अपनी अंतरात्मा की आवाज का अनुसरण करें ,अपने सत्य के साथ किसी तरह का समझौता न करें | देह की वासना ,मन की तृष्णा और अहं की क्षुद्रता को पैरों तले रौंदते हुए जब हम अंतरात्मा के पक्ष में निर्णय लेते हैं तो हमारा आत्म -सम्मान उछलकर हमारे व्यक्तित्व को आत्म -गौरव की एक नई चमक देता है ,परंतु जब हम जीवन के भय -प्रलोभन ,वासना -स्वार्थ एवं अहं की क्षुद्रता के सामने घुटने टेक देते हैं तो तत्क्षण हमारे चेहरे पर आत्म ग्लानि की राख पुत जाती है और व्यक्तित्व की चमक क्षीण हो जाती है |
व्यक्ति की विश्वसनीयता एवं प्रमाणिकता उच्च आत्म सम्मान की द्दोतक है 

18 April 2013

DUTIFUL

'पवित्र जीवन ,प्रेमी स्वभाव ,परमार्थपरायणता ही कर्तव्य निष्ठा की सही परिभाषा है ,जो स्वर्गीय आनंद दिलाती हैं '|
मरने के बाद तीन व्यक्तियों की आत्माएँ मृत्यु देवता धर्मराज के पास पहुंची | दूतों ने पहले के बारे में बताया कि ये बड़े महात्मा हैं ,युवावस्था में माता -पिता ,पत्नी -बच्चों को छोड़कर ये जंगल में चले गये और जीवन -भर तप करते रहे | धर्मराज ने कहा -"इसने कर्तव्यों की उपेक्षा की है | ऐसा व्यक्ति धार्मिक कैसे बन सकता है ?परिवार के लोगों के साथ इसने विश्वासघात किया है | इसे कर्तव्य पालन हेतु पुन:धरती पर भेजें ,तभी यह स्वर्ग पा सकेगा | "दूसरे व्यक्ति के बारे में दूतों ने कहा -"यह बड़ा कर्तव्यपरायण है | पत्नी बीमार पड़ी ,तब भी यह बेपरवाह काम करता रहा | मर गई पर चिंता नहीं की | जीवन भर अपने काम में लगा रहा | "धर्मराज बोले -" ऐसे ह्रदयहीन का स्वर्ग में क्या स्थान इसे  फिर से पृथ्वी पर भेजो ,संवेदना पूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा दो | "!तीसरे  व्यक्ति के बारे में दूतों ने बताया कि यह एक साधारण गृहस्थ है | ईश्वर विश्वास और पवित्रता का जीवन जिया ,परिवार को प्रेमपूर्वक विकसित कर संस्कारवान बनाया | हमेशा दूसरों के सुख और उत्थान हेतु कार्य करता रहा | "धर्मराज ने कहा -"स्वर्ग ऐसे ही पवित्र और परमार्थी लोगों के लिये बनाया गया है | इन्हें आदर पूर्वक स्वर्ग में स्थान दें | "

SATISFACTION

एक युवक बड़ा परिश्रमी था | दिन भर काम करता ,शाम को जो मिलता खा -पीकर चैन की नींद सो जाता | एक दिन उसने एक धनी व्यक्ति का ठाठ -बाट देख लिया | बस नींद उड़ गई | रात भर नींद नहीं आई ,उसी के ख्वाब देखने लगा | कुछ संयोग ऐसा हुआ कि उसकी लाटरी लग गई | ढेरों धन उसे अनायास मिल गया | अब उसका सारा समय भोग -विलास में बीतने लगा | विलासिता पूर्ण जीवन जीने और श्रम न करने से वह दुर्बल होता चला गया | उसके पूर्व के मित्र भी उससे जलने लगे ,सब पैसे के प्रेमी हो गये | उसे भी किसी पर विश्वास नहीं रहा | चिंता और दोगुनी हो गई ,नींद फिर चली गई | सोचने लगा ,इससे पूर्व की जिंदगी बेहतर थी | एक दिन एक महात्मा जी उधर आये | उनसे उसने सुख और ख़ुशी का मार्ग पूछा | महात्मा ने एक शब्द कहा --'संतोष '| और आगे बढ़ गये | युवक समझ गया | सारी मुफ्त की संपति उसने एक अनाथालय और विद्दालय को दान कर दी और स्वयं एक लोकसेवी का ,परिश्रम शील जीवन जीने लगा | 

17 April 2013

IDENTITY

एक संत कह रहे थे -"मनुष्यों में कुछ देवता पाये जाते हैं ,शेष तो नर -पिशाच ही होते हैं | "जिज्ञासु ने पूछा -"इन नर पिशाचों ,मनुष्यों तथा देवताओं की पहचान क्या है ?"
संत ने कहा -"देवता वे हैं ,जो दूसरों को लाभ पहुँचाने के लिये स्वयं हानि उठाने के लिये तैयार रहते हैं |
मनुष्य वे हैं ,जो अपना भी भला करते हैं और दूसरों का भी |
नर -पिशाच वे हैं ,जो दूसरों की हानि ही सोचते हैं ,भले ही इस प्रयास में उन्हें स्वयं भी हानि उठानी पड़े | "



               एक महात्मा नाव पर जा रहे थे | उसी में कुछ दुष्ट भी बैठे थे | महात्मा का सिर घुटा हुआ देखकर दुष्टों को शरारत सूझी ,वे उनकी खोपड़ी पर चपत लगाने का मजा लूटने लगे | आकाश के देवता यह द्रश्य देखकर बहुत क्रुद्ध हुए | उन्होंने महात्मा से पूछा -"कहो तो नाव उलट दें और इन सभी पापियों को नदी में डुबो दें | "महात्मा ने हँसते हुए कहा -"उलटना और डुबोना तो सभी जानते हैं | आप देवता हैं तो इन्हें उलटकर सीधा कीजिये और डुबाने की अपेक्षा इन्हें उबार दीजिये ,सुधार दीजिये | "देवताओं ने वैसा ही किया | 

GENEROUS

'आदमी चाहे तो थोड़े में गुजर कर सकता है | सुखी बन सकता है और महान कार्यों के लिये समय निकाल सकता है | '
                 संत रामदास अपने शिष्यों के साथ धर्म प्रचार के लिये जा रहे थे | रास्ते में निर्जन प्रदेश पड़ा ,दूर तक कोई गांव दिखाई नहीं देता था | भोजन की समस्या उत्पन्न हुई ,तो उन्होंने कहा -जो कुछ तुम्हारे पास है ,उसे इकट्ठा कर लो और मिल बांटकर खाओ | शिष्यों के पास कुल मिलाकर पांच रोटी और दो टुकड़े तरकारी थी | शिष्यों ने उसे भरपेट खाया और जो भूखे भिखारी उधर से निकले ,वे भी उसी से तृप्त हो गये | एक शिष्य ने पूछा ,गुरुवर !इतनी कम सामग्री में इतने लोगों की तृप्ति का रहस्य क्या है ?संत ने कहा -"हे शिष्यों !धर्मात्मा वह है जो स्वयं की नहीं ,सबकी बात सोचता है | अपनी बचत सबके काम आये ,इस विचार से ही तुम्हारी पांच रोटी अक्षय अन्नपूर्णा बन गईं | जो जोड़ते हैं वे ही भूखे रहेंगें ,जिनने देना सीख लिया उनके लिये तृप्ति के साधन आप ही आ जुटते हैं | "

16 April 2013

ईसा कहते थे -"महानता अपनाने के लिये बांया हाथ सक्रिय हो तो उसी से पकड़ लें | ऐसा न हो कि दाहिना हाथ संभालने की थोड़ी सी अवधि में ही शैतान बहका ले और जो सुयोग बन रहा था ,वह सदा के लिये अपनी राह चला जाये | "

TIME MISSPENT IS NOT LIVED BUT LOST

'आत्मा का नाश करने वाले नरक के तीन दरवाजे हैं --काम ,क्रोध और लोभ | इसलिये इन तीनों को त्याग देना चाहिये | '
एक बार पांच असमर्थ ,अपंग एकत्र हुए और कहने लगे कि यदि भगवान ने हमें समर्थ बनाया होता तो हम परमार्थ का कार्य करते ,पर क्या करें !अंधा बोला -मेरी आँखे होती तो जहां कहीं बिगाड़ दिखाई देता ,उसे सुधारने में लग जाता | लंगड़े ने कहा -मेरे पैर होते तो मैं दौड़ -दौड़कर भलाई का काम करता | निर्धन ने कहा -मेरे पास धन होता तो मैं दीन -दुखियों के लिये लुटा देता | मूर्ख ने कहा -यदि मैं विद्वान् होता तो संसार में ज्ञान की गंगा बहा देता ,चारों ओर ज्ञान का प्रकाश होता | वरुण देव ने उनकी बातें सुनी और सच्चाई परखने के लिये उन्होंने सात दिन के लिये सशर्त उन्हें आशीर्वाद दिया | जैसे ही रूप बदला ,पांचों के विचार भी बदल गये |
                 अंधे ने कामुकता की आदत अपना ली | लंगड़ा घूमने निकल पड़ा धनी ठाठ -बाट एकत्र करने में लग गया | बलवान दूसरों को सताने लगा | विद्वान ने सबको उल्लू बनाना शुरू कर दिया | वरुण देव लौटे और देखा कि वे सब तो स्वार्थ सिद्धि में लगे थे |देवता नाराज हो गये उन्होंने वरदान वापस ले लिये |
अब उन्हें प्रतिज्ञा याद आईं ,लेकिन समय निकल चुका था |
हम सब भी जीवन में मिली विभूतियों को याद नहीं रखते ,उनका सुनियोजन नहीं करते | तृष्णा और वासना के पीछे भागते -भागते ही सारा जीवन बीत जाता है |  

15 April 2013

BALANCE BETWEEN PHYSICAL AND MENTAL LABOUR

उच्चस्तरीय दायित्वों को निभाने के लिये जिस प्रतिभा की आवश्यकता है वह श्रमशीलों में होती है | यही कारण है कि पश्चिमी देशों में बड़े -बड़े उद्दोगपति अपने बच्चों को दायित्व का अनुभव कराने के लिये कारखानों में मजदूरों की तरह श्रम कराते हैं | पुरातन भारत के सभी राजा अपने पुत्रों को जीवन कला के शिक्षण हेतु साधारण बालक की तरह गुरुकल भेजा करते थे |
रूस में किसी समय समूचे राजपरिवार के सभी सदस्यों के लिये शारीरिक श्रम करना अनिवार्य था | सम्राट पीटर तब राजकुमार थे ,उन्हें युवराज घोषित किया जा चुका था परन्तु  उन्होंने शाही शान -शौकत के बाड़े से निकलकर हालैंड की जहाज निर्माता कंपनी में ,इंग्लैंड की पेपर मिल और आटा मिल में काम किया | उन्होंने लोहे के बाट बनाने वाली फैक्ट्री में भी कार्य किया और उस मजदूरी से प्राप्त राशि से अपने फटे जूते के स्थान पर नये जूते ख़रीदे | आज भी ये जूते और तोलने के बाट रूस के संग्रहालय में श्रम निष्ठा के प्रतीक के रूप में सुरक्षित हैं |
इसी तरह अमेरिका के धनी व्यक्तियों की गणना में आने वाले साइरस डब्लू फील्ड ने जीवन के आरंभिक दिनों में एक फर्म में मजदूरी की | सुबह 6 बजे से सूर्यास्त होने तक वे अपनी फैक्ट्री में काम में जुटे रहते थे |  इस कठोर श्रम के बाद वे वाणिज्य लाइब्रेरी जाते थे और वहां व्यवसाय संबंधी पुस्तकों का अध्ययन करते | इसी सामंजस्य पूर्ण परिश्रम के कारण साइरस अमेरिका के सुविख्यात उद्दोगपति बन सके |
प्रतिभावान बने ,इसके लिये चिंतन और क्रिया दोनों ही पक्षों में संतुलन अनिवार्य है |
                केवल शारीरिक श्रम करने वाले जो मानसिक श्रम नहीं करते उन्हें गंवार ,मूर्ख कहा जाता है और मानसिक श्रम करने वाले जो शारीरिक पक्ष की ओर ध्यान नहीं देते उन्हें दुर्बल ,रोगी और तनाव जैसी स्थिति से गुजरना पड़ता है | यदि दोनों में सामंजस्य स्थापित हो जाये -संतुलित श्रम निष्ठा हो तो जीवन में एक अलौकिक निखार आने लगता है | इसे एक बार समझ लिया जाये तो वह आदत बन जाती है और वह हमारे गले में पुष्पाहार की तरह सुशोभित हो जाती है | 

14 April 2013

GAYTRI MANTR -RELEASE TENSION

गायत्री मंत्र के जप से सूक्ष्म शरीर का सितार 24 स्थानों से झंकार देता है | गायत्री मंत्र का ध्यान सहित मानसिक जप करने से शरीर में मांस पेशियों में ,स्नायु कोषों में शिथिलीकरण प्रक्रिया को बढ़ाने वाले रसायन रक्त में बढ़ने लगते हैं जो शरीर को बड़ी तेजी से तनाव रहित करते हैं |
     निश्चित संख्या ,निश्चित समय एवं निश्चित स्थान इन तीन अनुशासनों को मानकर जो गायत्री का जप करता है ,उसके जीवन में तनावजन्य परिस्थितियां कभी आयेंगी ही नहीं | 

TENSION

औषधियाँ तो रोग के लिये हैं | स्वस्थ रहने के लिये संयम ,नियम और श्रम की अति आवश्यकता है |
                चुनौतियों से भागने और अपनी क्षमताओं का सही आकलन न कर पाने के कारण तनाव उत्पन्न होता है | सामान्य व्यक्ति अपने जीवन को एक ढर्रे में जीना चाहता है और जीता है ,इसलिये उस ढर्रे से इतर चीजें उसे तनावग्रस्त कर देती हैं |
हम अपनी क्षमता को पहचाने ,चुनौतियों से भागे नहीं ,उन्हें ईश्वर का वरदान समझकर सहर्ष स्वीकार करें -इस आत्म विश्वास के साथ कि परिस्थितियां चाहे कितनी भी विपरीत क्यों न हों ,एक दिन सौभाग्य का सूर्योदय अवश्य होगा | ऐसी सकारात्मक सोच से हम तनाव के बीच तनावमुक्त जीवन जी सकेगें | 

13 April 2013

PEACE BEGINS WHERE AMBITION ENDS

जिसे शांति की चाहत है ,उसे महत्वाकांक्षा छोड़नी पड़ेगी |
             एक मल्लाह और एक उसका पुत्र दोनों एक बड़ी नाव पर सवार होकर समुद्र में उसे खेते हुए जा रहे थे | थोड़ी देर बाद तूफान आया और नाव डगमगाने लगी | मल्लाह ने अपने बेटे से कहा कि ऊपर जा और अपनी पाल को ठीक से बांध दे | पाल को यदि ठीक तरीके से बांध दिया जायेगा तो हवा का रुख धीमा हो जायेगा और हमारी नाव डगमगाने से बच जायेगी | बेटा बाँस के सहारे ऊपर चढ़ गया और पाल को ठीक तरीके से बाँधने लगा | उसने जब ऊपर की ओर देखा तो उसे चारों तरफ समुद्र की ऊँची लहरें दिखायी दे रहीं थीं | जोरों से हवा चल रही थी अँधेरा छाता जा रहा था | यह सब देखकर बेटा चिल्लाया -"पिताजी !मेरी तो मौत आ गई ,देखिये दुनिया में प्रलय होने जा रही है | "तब उसका पिता चिल्लाया -बेवकूफ !सिर्फ नीचे की ओर नजर रख और इधर -उधर मत देख | "बाप उस वक्त हुक्का गुड़गुड़ा रहा था | बेटा नीचे चला आया |
                       अपने बेटे की तरफ हुक्का बढ़ाते हुए उसने कहा कि --अपने से ऊपर देखने वाले महत्वाकांक्षी व्यक्ति दिन -रात जलते रहते हैं | मनुष्यों की तृष्णा ,कामनाएँ असीम एवं अपार हैं | ऐसे व्यक्ति को न शांति मिलती है और न मुक्ति | मनुष्य का जीवन शांतिपूर्ण होना चाहिये ,अशांत और विक्षुब्ध नहीं |
           

PEACE

शांति में ही समस्त सुखों का अनुभव होता है | अंतर्मन में शांति प्रगाढ़ हो तो दुःखमय परिस्थितियाँ ,बाहरी जीवन के सारे आघात मिलकर भी अन्तस् में दुःख को अंकुरित नहीं कर पाते | सत्य यही है कि अंतरात्मा शांति चाहती है |-----संत इमर्सन ने लिखा है -"युवावस्था में मेरे अनेक सपने थे | उन्ही दिनों मैंने एक सूची बनाई थी कि जीवन में मुझे क्या -क्या पाना है | इस सूची में वह सभी कुछ लिखा था ,जिन्हें पाकर मैं धन्य होना चाहता था | स्वास्थ्य ,सौंदर्य ,सुयश ,संपति ,सुख ,इसमें सभी कुछ था | इस सूची को लेकर मैं बुजुर्ग संत के पास गया और उनसे कहा -"क्या मेरी इस सूची में जीवन की सभी उपलब्धियां नहीं आ जाती हैं ?"उन्होंने मेरी बातों को ध्यान से सुना और कहा -"मेरे बेटे !तुम्हारी यह सूची बड़ी सुंदर है | बहुत विचारपूर्वक तुमने इसे बनाया है ,फिर भी तुमने इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात छोड़ दी ,जिसके बिना सब कुछ व्यर्थ हो जाता है | "मैंने पूछा -"वह क्या है ?"उत्तर में उन वृद्ध अनुभवी संत ने मेरी सम्पूर्ण सूची को बुरी तरह से काट दिया और उसकी जगह उन्होंने केवल एक शब्द लिखा _शांति | "
                    यह शांति कोई बाहरी वस्तु नहीं ,यह तो स्वयं का ही निर्माण है | यह कोई रिक्त और खोखली मन:स्थिति नहीं है ,यह अंतर्मन के सकारात्मक संगीत की मधुरता है |

  

12 April 2013

'निष्ठुरता से बढ़कर कुरूपता और कहीं कोई नहीं | सुन्दरता चेहरे की बनावट एवं साज -सज्जा पर टिकी हुई नहीं है | वह तो अच्छे स्वभाव और सद्व्यवहार से उभरती है |

                   'यदि अंत:करण मलिन और अपवित्र बना रहे तो परमात्मा की उपासना भी फलवती न होगी | अत:ईश्वर की उपासना निष्पाप ह्रदय से करें | '
प्रभु कृपा की एक ही शर्त है -पवित्रता | यदि हम परमपिता परमेश्वर से भी निष्पाप -पवित्र -उदार बनकर दिल से नहीं मिलते तो उनकी अमृत वर्षा हम पर क्यों होगी ?

REAL BEAUTY

भावनाओं का सौंदर्य अप्रतिम होता है ,सौंदर्य का तात्पर्य है -सुंदर होना एवं सुंदर दीखना | 
सुंदर दीखना बड़ा आसान है ,कृत्रिम बनाव श्रंगार ,आभूषण ,सौंदर्य -प्रसाधन सुंदर दीखने के लिये पर्याप्त हैं | 
सुंदर होना कठिन है ,सुंदर होना निर्भर करता है व्यक्तित्व के उन तमाम घटकों पर जो कि उसका निर्माण करते हैं जैसे -विचार ,भाव ,व्यवहार आदि | वैचारिक सौंदर्य ,चारित्रिक सौंदर्य ,भावनाओं का सौंदर्य ,सुंदर देह आदि | आंतरिक और बाह्य दोनों तत्व सुंदर हों ,ऐसा सौंदर्य का संतुलन ही वास्तविक सौंदर्य है | 
          
अपने समय की प्रख्यात लेखिका ,नारी स्वतंत्रता की हिमायती मेरी स्टो किशोर अवस्था में बहुत सुंदर लगती थीं | इसकी चर्चा और प्रशंसा भी बहुत होती थी | इस पर लड़की को गर्व होने लगा | बात पिता को मालुम हुई ,तो उन्होंने बेटी को बुलाकर प्यार से कहा -"बच्ची ,किशोरावस्था का सौंदर्य प्रकृति की देन है | इस अनुदान पर उसी की प्रशंसा होनी चाहिये | तुम्हे गर्व करना हो तो साठ (60 )वर्ष की उम्र में शीशा देखकर करना कि तुम उस प्रकृति की देन को लम्बे समय तक स्थायी रखकर अपनी समझदारी का परिचय दे सकीं या नहीं | "इस शिक्षा का ही परिणाम था कि अपने अहंकार को गलाकर मेरी स्टो एक समाजसेविका के रूप में विकसित हो सकीं |  

11 April 2013

अनीति का उपार्जन ऐसा है मानो कच्चे घड़े में पानी भरना | वह घड़ी आने में देर नहीं लगती जब घड़ा फूटता है और पानी बिखरता है |

               
                'पाप पहले आकर्षक लगता है फिर आसान हो जाता है ,इसके बाद आनंद का आभास देने लगता है तथा अनिवार्य प्रतीत होता है | क्रमश:वह हठी और ढीठ बन जाता है | अंतत:सर्वनाश करके हटता है |  

DESIRE

नगर का नामी अमीर हजरत इब्राहीम के पास बेशुमार हीरे -जवाहरात और अशरफियों की थैलियाँ लेकर पहुंचा और उनको हजरत के पैरों में रखकर आशीर्वाद की याचना करने लगा | हजरत बोले -"ये सब हटा ले !मैं भिखारियों की लाई सौगात नहीं लेता | "अमीर चकित हुआ ,कहने लगा -"हुजूर !आपको शायद गलतफहमी हुई है ,मैं तो नगर का सबसे अमीर आदमी हूं | "हजरत बोले -"तू अमीर है तो किस आशीर्वाद की याचना करता है ?"सेठ बोला -"आपकी कृपा हो जाती तो मैं राज्य का सबसे अमीर व्यापारी बन जाता | "हजरत इब्राहीम मुस्कराए और बोले -"जब तेरी हसरतों का ठिकाना ही नहीं है तो अपने आप को भिखारियों की गिनती से क्यों जुदा करता है !"ऐसे ही अनेक मनुष्य ,अपना जीवन कामनाओं -वासनाओं की पूर्ति हेतु गुजारते हैं ,पर कामना यह करते हैं कि उनकी गिनती कुलीनों ,बड़ों की श्रेणी में की जाये | ऐसा आडम्बर सिर्फ आत्म पतन के मार्ग की ओर ले जाता है ,उन्नति की ओर नहीं | 

10 April 2013

STRUGGLE IN LIFE

जीवन के संघर्ष और समुद्री तूफान की आँधियों से दुखी एक नाविक जहाज से उतर कर आया तो द्वीप के किनारे खड़ी एक अविचलित ,अडिग चट्टान को देखकर बड़ी शांति को प्राप्त हुआ | स्वच्छ ,सुंदर सी उस चट्टान पर खड़े होकर ,वह चारों ओर देखने लगा | उसने देखा कि द्वीप के कोने में स्थित उस चट्टान पर निरंतर समुद्र की लहरों का आघात हो रहा है ,तो भी चट्टान के मन में न कोई रोष है ,न बैर | | न कोई ऊब ,न दुःख | मरने की भी उसने कभी इच्छा नहीं की | नाविक का ह्रदय श्रद्धा से भर गया | उसने चट्टान से पूछा -"तुम पर चारों ओर से आघात लग रहे हैं ,फिर भी तुम परेशान नही हो | तुम्हारी इस सहनशीलता का कारण क्या है ?"चट्टान की आत्मा धीरे से बोली -"तात !हम निराश हो गये होते तो एक क्षण ही सही दूर से आये आप जैसे अतिथियों को विश्राम देने ,उनका स्वागत करने से वंचित रह जाते | | संघर्षों से लड़ने में ही हमें आनंद आता है | नाविक ने उत्साहित होकर स्वयं से कहा -"जीवन में कितने ही संघर्ष आयें ,मैं भी अब इस चट्टान की तरह जीऊंगा ,ताकि हमारी भावी पीढ़ी और मानवता के आदर्शों की रक्षा हो सके | 

9 April 2013

IMANDARI KI KAMAI

कुशीनगर का राजा लोगों के पुण्य खरीदने के लिये प्रसिद्ध था | उसने तराजू लगा रखी थी | पुण्य बेचने वाले अपनी ईमानदारी की कमाई का विवरण लिखकर एक पलड़े में रखते ,उस कागज के अनुरूप तराजू स्वयं स्वर्ण मुद्रा देने की व्यवस्था कर देती |
जयनगर पर शत्रुओं का आक्रमण हुआ और वहां के राजा को पत्नी -बच्चों समेत रात्रि के अँधेरे में भागना पड़ा | पास में कुछ न था | रानी ने राजा से कहा -'आपने जीवन भर दान -पुण्य किया ,उसी में से थोड़े कुशीनगर नरेश को बेचकर धन प्राप्त कर लिया जाये | कुशीनगर तक कैसे पहुँचा जाये ?इसके लिये रानी ने उपाय किया कि वह ग्रामीणों के घर कार्य करेंगी ,राजा रोटी बनायेंगे | 'एक दिन राजा रोटी सेंक रहे थे ,उसी समय एक भिखारी आ गया ,राजा संकोच में थे ,तभी रानी आ गईं और कहा -"हम एक दिन और भूखे रह लेंगे यह रोटी भिखारी को दे दो | "राजा ने सारी रोटियां भिखारी को दे दीं और भूखे पेट वे लोग चल पड़े |
कुशीनगर पहुंचकर राजा ने अपना आने का कारण बताया | उत्तर मिला कि "धर्म -कांटे पर चले जाओ ,जो ईमानदारी की कमाई हो उसे तराजू के एक पलड़े में रख देना ,कांटा आपको उसी आधार पर स्वर्ण मुद्रा दे देगा | "जयनगर के राजा ने अपने अनेक पुण्य का विवरण तराजू में रखा ,पर उनसे कुछ न मिला | तब पुरोहित ने कहा -आपने जो परिश्रमपूर्वक कमाया और दान किया हो ,उसी का विवरण लिखें | तब राजा ने पिछले दिनों भिखारी को जो रोटियां दी थीं ,उसका ब्योरा लिखकर तराजू में रखा | दूसरे पलड़े में उसके बदले 1 0 0 (सौ )स्वर्ण मुद्राएँ आ गईं | पुरोहित ने कहा -"उसी दान का पुण्य फल होता है ,जो ईमानदारी से परिश्रमपूर्वक कमाया गया हो | "राजा को पुण्य का सही अर्थ ज्ञात हुआ और प्रतिफल भी मिला | 

PURE MEAL

आहार शुद्ध होने से अंत:कारण की शुद्धि होती है और इससे विवेक -बुद्धि ठीक काम करती है | आहार के संबंध में तीन शब्द कहे जाते हैं --हित ,मित और ऋत |
हितभोजी वह है ,जो स्वास्थ्य के अनुकूल एवं उपयोगी पदार्थ ग्रहण करता है | ऐसा व्यक्ति स्वाद के लिये नहीं बल्कि स्वास्थ्य के लिये खाता है | मितभोजी वह है ,जो थोड़ा खाता है ,जितना आवश्यक है उतना खाता है | आहार के संबंध में तीसरा सबसे महत्वपूर्ण शब्द है -ऋत | --ऋत का संबंध पवित्रता एवं चेतना की निर्मलता से है | ऋत का अर्थ भोजन में समाई भावनाओं में निहित है | भोजन बनाने वाले की भावनाएं क्या हैं ?इसलिये इस भोजन को वही खा सकता है ,जो मुफ्त की नहीं खाता | दूसरों का शोषण नहीं करता | दूसरों की आह ,दूसरों का हक छीनकर ,कष्ट देकर जो भोजन हमारे पेट में जाता है ,वह हमारी भावनाओं को विकृत बनाता है ,इसी के परिणामस्वरूप शारीरिक कष्ट और असाध्य रोग उत्पन्न होते हैं |
वस्तुत:आहार का मूल्यांकन चेतना के विकास का मूल्यांकन है | ऋत आहार का स्वरुप ही हमारी चेतना को विकृत या परिष्कृत करता है | 

8 April 2013

TOTAL TREATMENT

'जो जैसा सोचता है और करता है वह वैसा ही बन जाता है | '
मानवी मस्तिष्क से उत्पन्न होने वाली विद्दुत  सम्पूर्ण शरीर का कार्य संचालित करती है | अवचेतन मस्तिष्क से संबंधित असंख्य तार शरीर के प्रत्येक घटक तक पहुँचते हैं और इसकी सुव्यवस्था बनाये रखते हैं | रोग निवारण के लिये शरीर के साथ मन का उपचार भी अति आवश्यक है | ईर्ष्या ,द्वेष ,असंयम बरतने पर मस्तिष्क पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और एक विशिष्ट प्रकार के हारमोंस का स्राव होने लगता है जो रोगों की उत्पति का कारण बन जाता है |
शरीर को स्वस्थ रखने के लिये मानसिक स्तर की स्वस्थता अति आवश्यक है | रोगियों के चिंतन में यदि 'सकारात्मक सोच 'का प्रादुर्भाव कर दिया जाये तो बड़े ही चमत्कारी परिणाम उत्पन्न होते हैं | श्रेष्ठ ,पवित्र विचार शरीर की जैविक रासायनिक प्रक्रियाओं को सक्रिय बनाते हैं ,इससे शरीर में कई तरह के रासायनिक स्राव उत्पन्न होते हैं जो मानवी स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं 

7 April 2013

PARISHRAM

माली के पुत्र ने पिता को बाग में मेहनत करते देखकर पूछा -"पिताजी !आप गुलाब के पौधे पर इतनी मेहनत करते हैं ,वर्ष भर देखभाल करने के बाद ही पौधा तैयार होता है | इसकी जगह बेशरम की झाड़ियाँ क्यों नहीं लगाते ,वो तो बिना किसी तैयारी के ही उग आती हैं | "माली हँसा और बोला -"बेटा !श्रेष्ठ संपदाएं और विभूतियां हमेशा परिश्रम के बाद ही प्राप्त होती हैं | दुर्गुण और अवांछित तत्व तो बिना प्रयास के ही मिल जाते हैं | "

IMPORTANCE OF LABOUR

श्रम का महत्व अपार है जिससे अभाव ,दरिद्रता ही नहीं ,बीमारियों तक को भगाया जा सकता है |
               पहाड़ की अनुमति से बीमारियाँ पर्वत पर रहने लगीं | कुछ दिन बीते ,एक किसान को कृषि योग्य भूमि की कुछ कमी पड़ी | पहाड़ बहुत सारी जमीन दबाए खड़ा है ,यह देखकर परिश्रमी किसान पहाड़ काटने और उसे चौरस बनाने में जुट गया | किसान ने बहुत सी भूमि कृषि योग्य कर ली | यह देखकर दूसरे किसान भी जुट पड़े | किसानों की संख्या देखते -देखते सैकड़ों तक जा पहुँची | पहाड़ घबराया और अपने बचाव के उपाय खोजने लगा | कुछ और तो समझ में नहीं आया ,उसने सब बीमारियों को एकत्र कर फावड़े और कुदाल चलाते हुए किसानों की ओर संकेत किया और कहा ,यह रहे मेरे शत्रु ,तुम सबकी सब इनपर झपट पड़ो और मेरा नाश करने वालों का सत्यानाश कर डालो |
अपने -अपने आयुध लेकर बीमारियाँ आगे बढीं और किसानों के शरीर से लिपट गईं ,पर किसान तो अपनी धुन में थे ,वे फावड़ा जितनी तेजी से चलाते ,पसीना उतना ही अधिक निकलता और सारी बीमारियाँ धुलकर नीचे गिर जातीं | बहुत प्रयत्न किया ,पर बीमारियों की एक न चली | पहाड़ ने जब देखा कि बीमारियाँ उसकी रक्षा नहीं कर सकीं ,तो वह बढ़ा कुपित हुआ और अपने पास से भगा दिया | तब से बीमारियाँ गंदगी में ,आलसी में प्रश्रय पाती हैं | 

6 April 2013

SELF SATISFACTION

टालस्टाय केवल एक प्रसिद्ध साहित्यकार ही नहीं ,वरन एक उच्च कोटि के संत भी थे | एक बार वे एक सूखाग्रस्त इलाके से निकल रहे थे | भूखे ,पीड़ित व बेसहारों को देखकर उनके ह्रदय में करुणा उमड़ आई और उनके पास जो कुछ भी था ,वो उन्होंने जरुरतमंदों में बाँटना प्रारंभ कर दिया | किसी को उन्होंने पैसे दिये तो किसी को खाना और अंत में एक व्यक्ति को उन्होंने अपना कोट और स्वेटर भी उतार कर दे दिया | सब देने के पश्चात जब वे आगे बढ़े तो एक विकलांग व्यक्ति उनके पास आया | उसे देखकर टालस्टाय की आँखों में आँसू आ गये और वे बोले -"भाई !तुम्हे देने को अब मेरे पास कुछ भी नहीं है | "यह सुनकर विकलांग व्यक्ति ने उन्हें गले लगा लिया और बोला -"आप ऐसा न बोलें | आज आपने जो प्रेम दिया है ,वो बहुतों के पास देने को नहीं है | "टालस्टाय ने अपनी आत्म कथा में लिखा है कि उस दिन जो संतोष उन्हें मिला ,वैसा उन्हें कभी अनुभव नहीं हुआ | पीड़ित को सहारा देना ही पुण्य और श्रेष्ठ कर्म है |  

SELF TRANSFORMATION

परिशोधन का अर्थ है -मन की पवित्रता तथा अंत:करण को दुर्भावनाओं से रहित करना | भीतरी पवित्रता का उद्देश्य यदि पूरा नहीं हुआ तो बाह्य कर्मकांडो का कुछ विशेष लाभ नहीं मिल पाता |
एक संत अपने शिष्यों के साथ गंगा किनारे बैठे हुए थे | उनसे थोड़ी दूर एक व्यक्ति गंगा स्नान कर रहा था | उसने बहुत देर गंगा स्नान किया फिर भजन किया और उसके बाद किनारे बैठकर भोजन करने लगा | उसी समय एक अपंग व्यक्ति उसके पास आकर भोजन की याचना करने लगा | उसे कुछ देने के बजाय वो व्यक्ति उस अपंग को गालियाँ देने लगा और अपने पास से हटाने के लिये धक्का भी देने लगा | यह देखकर संत अपने शिष्यों से बोले -"गंगास्नान का पुण्य तो बहुत देखा था .पर आज पाप भी देख लिया ।"संत ने शिष्यों से कहा -"केवल बाहर से शरीर साफ कर लेने से मन पर चढ़ा मैल दूर नहीं होता | जिसके ह्रदय में दीन -दुखियों के लिये करुणा नहीं ,संवेदना नहीं ,वो लाख प्रयत्न कर ले ,पर उसे पुण्य नहीं ,केवल पाप का भागी बनना पड़ेगा | अध्यात्म का सार बाह्य क्रिया -कलापों में नहीं ,वरन आंतरिक परिष्कार में है | 

5 April 2013

POSITIVE THINKING

एक बार बादशाह अकबर ने कवियों का सम्मेलन बुलाया और विषय रखा ,--'अकबर '| इस पर अनेक कवियों ने अकबर की प्रशंसा में कविताएँ बनाई और पुरस्कार पाया | महाकवि गंग भी उस उस सम्मलेन में गये ,पर झूठी प्रशंसा करने को तैयार न हुए | बादशाह ने कवि गंग से कहा -"आपको भी कुछ न कुछ अवश्य सुनाना पड़ेगा | "कवि ने कहा -"मुझसे मिथ्या प्रशंसा की आशा न करें ,जो यथार्थ है वही कहूँगा | भले ही आप नाराज हो जायें | "कवि गंग ने कविता बनाई और सुनाई | उसमे अकबर तथा उसके पूर्वजों द्वारा किये गये अत्याचारों का वर्णन था | भरे दरबार में अपनी निन्दा इस प्रकारअकबर आग बबूला हो गया | अकबर ने कवि गंग को हाथी के पैर के नीचे कुचलवा देने का प्राण दंड दिया  |
कवि गंग को ऐसी ही संभावना का भान भी था | इस मृत्यु दंड को कार्यान्वित होते हुए देखने के लिये अनेक लोग एकत्रित हुए | बादशाह स्वयं भी यह देखने आये कि कवि बड़ा निर्भीक बनता था ,देखें मृत्यु के समय वह निर्भीकता रहती है या नहीं |
कवि गंग ने मृत्यु के पूर्व एक कविता बनाई और सभी उपस्थित जनों को सुनाई | प्रशिक्षित हाथी उन्हें कुचलने को तैयार खड़ा था |
इस कविता में बड़ी सुंदर कल्पना थी --कहा गया कि स्वर्ग लोक में देवताओं ने कवि सम्मेलन बुलाया ,सब उपस्थित होकर अपनी बनाई कविता सुनाते गये ,पर कवि गंग उनके दरबार में बिना बुलाये नहीं गये ,उन्हें अपने स्वाभिमान का बोध था |
तब देवताओं ने सोचा स्वाभिमानी गंग को अपनी पीठ पर बिठाकर स्वर्ग ले आने के लिये किसी बुद्धिमान देवता को भेजना चाहिये | इसके लिये उपयुक्त गणेशजी ही हो सकते हैं | कवि को अपनी पीठ पर बिठाकर लाने के लिये हाथी रूपी गणेशजी को भेजा है ,वे ही मेरे सामने स्वर्ग ले जाने के लिये खड़े हैं | कविता की अंतिम पंक्ति थी --"कवि गंग को लेन गणेश पठायो | "
कवि को हाथी ने पैर से कुचल दिया ,पर वे मरते समय तक अपनी कल्पना में मस्त थे | मृत्यु को उन्होंने स्वर्ग का निमंत्रण और उनके स्वाभिमान की रक्षा करने वाला बुलावा ही माना | बादशाह सहित सभी दर्शक आश्चर्यचकित रह गये कि मृत्यु जैसे कष्ट को को भी उन्होंने सुख स्वप्न में परिणत कर लिया | 

4 April 2013

self -control

'मन के हारे हार है ,मन के जीते जीत '
रोग की जड़ें शरीर में नहीं ,मन में होती हैं | अधिकतर समस्याएं ,विकृति,एवं विकार ,आध्यात्मिक जीवन -द्रष्टि के अभाव में पनपते हैं | यदि पीड़ित व्यक्ति की जीवन द्रष्टि सुधार दी जाये तो समस्या का समाधान हो जाता है | विचार एवं चिंतन प्रणाली को स्वस्थ ,श्रेष्ठ ,पवित्र एवं सकारात्मक रखकर ही शरीर एवं मन -मस्तिष्क को स्वस्थ एवं प्रसन्न रखा जा सकता है | मानसिक संकल्प की द्रढ़ता के आगे असाध्य रोग भी ठीक होते देखे गये हैं | 

THE PRESERVATION OF HEALTH IS DUTY

समर्थ वैद्द जीवक अपने एक रोगी को लेकर चिंतित थे | वह पूर्ण रूप से स्वस्थ था ,बस उसकी एक आँख नहीं खुलती थी | जीवक अपने स्तर पर सारी जाँच कर चुके थे | शरीर के सभी अंगों के साथ आँख के भी सभी अवयव सामान्य थे | थककर उन्होंने महास्थविर रैवत ,जो तथागत के शिष्य थे ,अपनी कथा सुनाई |
रैवत मानवीय चेतना के ज्ञाता थे | सब जानने के बाद वे बोले -"जीवक !तुम्हारे रोगी की समस्या शारीरिक नहीं ,मानसिक है | उसने अपने जीवन में नैतिकता की अवहेलना की है | इसी वजह से यह ग्रंथि बनी है | प्रभु के प्रेम की ऊष्मा उसे अपनी मनोग्रंथि से मुक्त कर देगी | जाओ !इसे भगवान बुद्ध के पास ले जाओ | "
उस रोगी ने अपने सभी गलत कार्य ,मन की व्यथा प्रभु को सुना दिये | भगवान ने उसके मस्तक पर हाथ फेरा | उसकी आँख खुल गई ,रोग से मुक्ति मिली | उसके द्वारा पूर्व में किये गये गलत कार्यों के प्रायश्चित हेतु उसे जनसेवा का व्रत दिलाया गया ।
अनैतिकता समाज से मिटे तो बहुत से असाध्य रोग सहज ही नष्ट हो जायेंगे | 

3 April 2013

GRIEF

जिसने दुःख नहीं सहा वह सुख की मिठास क्या जाने | जो रोया नहीं उससे हँसना भी न आयेगा | जिसने हार -जीत नहीं देखी उसे पुरुषार्थ का महत्व कैसे मालुम होगा | | जिसे संदेह करना नहीं आता वह सही चिंतन भी न कर सकेगा |
तपस्वियों ने दुःख को देवों के हाथ का हथौड़ा कहा है ,जो चेतना के उन्नयन के नये सोपान स्रष्ट करता है ,विकास व परिष्कार के नये द्वार खोलता है |
सिनाका प्रसिद्ध संत थे | उनका एक शिष्य अपने नवजात शिशु को उनसे आशीर्वाद दिलाने पहुंचा | सिनाका बोले -"इसे क्या आशीर्वाद दूं ?"शिष्य ने अनुरोध किया -"बस इतना कह दें कि इसका व्यक्तित्व परिपक्व और तेजस्वी निकले | "सिनाका बोले -"भगवान करे इसके जीवन में संघर्षों की कमी न रहे | "शिष्य घबराया तो सिनाका ने उसे समझाते हुए कहा -"पुत्र !बिना तराशे हीरे की कीमत पत्थर से ज्यादा नहीं होती | संघर्ष और कठिनाइयां मनुष्य के व्यक्तित्व को मजबूत और सुगढ़ बनाते हैं ,जैसे श्रम के अभाव में शरीर नकारा हो जाता है वैसे ही विपरीत परिस्थितियों से टकराए बिना मनुष्य का व्यक्तित्व निष्प्राण बना रहता है | ये विषम घड़ियाँ ही उसके व्यक्तित्व को मजबूत और तेजस्वी बनायेंगी | "

2 April 2013

सत्कर्म ही वे पंख हैं ,जिनके सहारे मनुष्य स्वर्ग तक की ऊँची उड़ान उड़ सकता है |
भगवान का भजन करना श्रेष्ठ है ,किन्तु भजन का बहाना बनाकर सामाजिक और सांसारिक कर्तव्यों से विमुख होने की जो बात सोचते हैं ,उन्हें समाज में निठल्ले ,आलसी ,ढोंगी जैसे मर्माहत शब्द सुनने पड़ते हैं | 

PRESENT IS PRECIOUS

जो गुजर गया वह वापस नहीं आने वाला है |एक ही नदी के पानी में दो बार खड़ा हुआ नहीं जा सकता | नदी का पानी निरंतर प्रवाहित होता रहता है | दूसरी बार खड़े होने पर वह पानी आगे बढ़ चुका होता है | ठीक ऐसे ही वर्तमान पल एवं क्षण परिवर्तित होकर अतीत बन जाते हैं | जो व्यक्ति अपने अतीत में खोये रहते हैं वे मनोरोगी हो जाते हैं | जो अपने भविष्य की कल्पनाओं में डूबे रहते हैं वे शेखचिल्ली और पलायनवादी हो जाते हैं | निष्क्रिय ,निस्तेज और आलसी होकर सपने देखने से ऊर्जा के अभाव में सपने कभी पूरे नहीं होते |
हमारे हाथ में न तो अतीत है और न ही भविष्य ,हमारे नजदीक एवं निकट तो वर्तमान का क्षण है | यही वर्तमान का क्षण सच एवं यथार्थ है | इसी का सदुपयोग करना और इसी में जीने का अभ्यास करना चाहिये |
जो वर्तमान को साध लेता है ,वह अगला -पिछला सभी को साध लेता है | वर्तमान में विभूतियों ,उपलब्धियों का अंबार भरा पड़ा है | यही परमात्मा है ,यही जीवन है ,यही साधना है और इसी को साधना है | जो वर्तमान में जितना ज्यादा टिकेगा ,वह संसार और अध्यात्म दोनों ही क्षेत्रों में उतना ही सफल होगा | 

1 April 2013

A good heart is better than all the heads in the world

शीमक धनी इनसान थे ,पर उनके विषय में प्रसिद्ध था कि वे कंजूस हैं | इस मान्यता के पीछे कारण यह था कि वे सादगी पूर्ण जीवन जीते थे और अन्य धनी व्यक्तियों की भाँति अमीरी का आडम्बर नहीं करते थे | उन्हें सूचना मिली कि आचार्य महीधर ने सम्पूर्ण वेदों का भाष्य लिखा है ,पर धनाभाव के कारण वे उसे छपवा पाने में असमर्थ हैं | शीमक अपनी सारी कमाई लेकर आचार्य महीधर के पास पहुंचे और बोले -"आचार्य !आप ये सारा धन रख लें और इस ज्ञान का प्रचार -प्रसार करें | यदि इस धन के माध्यम से ये सद्ज्ञान सर्वसुलभ हो पाता है तो मेरा जीवन धन्य हो जायेगा | "लोगों को जब इस घटना का पता चला तो उन्हें समझ आया कि शीमक कंजूस नहीं ,महान दानी हैं | --अभिनन्दन धन का नहीं ,ह्रदय की विशालता का ,सह्रदयता का होता है | "

TOLERANCE

सहनशीलता में अदभुत शक्ति है | जिसने सहनशीलता के अभेद्द सुरक्षा कवच को ओढ़ लिया है ,उसे जीवन में प्रतिक्षण पड़ती चोटें और भी मजबूत और दृढ करती हैं | संत तिलोपा अपने शिष्यों को एक सच्ची घटना सुनाते थे ---एक युवक किसी लोहार के घर के पास से गुजरता था | उसने देखा कोने में बहुत से हथौड़े टूटे विकृत हुए पड़े हैं |
 | युवक ने लोहार से पूछा -"इतने सारे हथौड़ों को इस दशा तक पहुँचाने के लिये आपको कितनी निहाइयों की जरुरत पड़ी ?"इस सवाल के जवाब में लोहार जोर से हंसा और बोला -अरे भाई !केवल एक ही निहाई ।"युवक अचरज से देख रहा था केवल एक निहाई और वह भी अविजित और सुरक्षित जबकि अनेक हथौड़े और वे सब टूटे हुए | युवक कुछ और सोच पाता इतने में लोहार ने कहा -ऐसा इसलिये मित्र !क्योंकि हथौड़े चोट करते हैं और निहाई धैर्य से ,सर्वथा अविचलित भाव से सभी चोटों को सहती है | इसलिये एक ही निहाई सैकड़ो हथौड़ों को तोड़ डालती है | "इस कथा का समापन करते हुए संत तिलोपा ने अपने शिष्यों से कहा -"जीवन का सत्य सहनशीलता है | अंत में वही जीतता है ,जो चोटों को धैर्य पूर्वक सहता और स्वीकार करता है | "


               शिक्षा पूरी हुई तो शिष्यों ने गुरु से कहा कृपया मुक्ति का मार्ग भी बता दें | गुरु ने कहा -"परिसर में जो मूर्ति है ,उसे जी भरकर गालियां दे आओ | "शिष्यों ने वैसा ही किया और गुरु के पास आये ,गुरु ने पुन:आदेश दिया अब तुम लोग उस प्रतिमा पर फूल चढ़ा आओ | शिष्यों ने इस बार भी गुरु के आदेश का पालन किया | अब गुरु ने शिष्यों से पूछा -दोनों ही अवसरों पर मूर्ति की क्या प्रतिक्रिया थी ?शिष्यों ने एक स्वर से कहा -कुछ नहीं | गुरु ने कहा --बस ,यही मुक्ति का मार्ग है | भले -बुरे प्रसंगों में जब तुम लोग सहिष्णुता का अभ्यास कर लोगे ,तो मुक्ति का मार्ग सरल हो जायेगा | शिष्यों का समाधान हो चुका था |